परमेश्वर को खोजें, फिर परमेश्वर की सेवा करें

अपने पिता के परमेश्वर का ज्ञान रख, [उसका व्यक्तिगत ज्ञान रखें, उसके साथ परिचय रखें; और उसे समझें; उसकी प्रशंसा करें उस पर ध्यान दें] और खरे मन और प्रसन्न जीव से उसकी सेवा करता रह। (1 इतिहास 28:9)

यीशु ने उन लोगों के लिए जो धार्मिक कानून द्वारा शोषित किए गए थे सहानभूति रखी। वो लोगों को चंगा और बहाल होते देखना चाहता था ताकि वे जान सकें कि परमेश्वर भला है, कि वो दया से भरा हुआ और संयमी, क्रोध में धीमा, और क्षमा के लिए तैयार है। परमेश्वर मुफ्त में अनुग्रह देता है – हमें जो हम अपने आप नहीं कर सकते वो करने में सहायता के लिए अपनी शक्ति देता है। जब वो हमें कुछ करने के लिए कहता है, वो हमें शक्तिहीन नहीं छोड़ता, वो हमें वो देता जो इसके करने के लिए चाहिए होता है।

जब उसने कहा, “हे सब परिश्रम करनेवालों और बोझ से दबे हुए लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूँगा” (मत्ती 11:28)। वह आत्मिक तौर पर थक कर चूर हुए लोगों के बारे में बात कर रहा था। वो सेवा का प्रयास कर रहे पर असफलता जैसा महसूस करते लोगों की थकावट में उन्हें तसल्ली देना चाहता था। कलीसिया में आज हजारों लोग है जो अत्यधिक आराम करते और आत्मिक तौर पर कुपोषित है। लोग परमेश्वर के साथ एक शक्तिशाली संबंध रखना चाहते है और कुछ भी जो धर्म ने उन्हें करने के लिए कहा है वो सब उन्होंने किया है, और फिर भी वे स्वयं को खाली पाते है।

परमेश्वर को प्रसन्न करने की अपनी इच्छा में, उन्होंने परमेश्वर को खोजने और उसकी आवाज सुनने के स्थान पर बिना उससे विशेष निर्देश पाए परमेश्वर के लिए कार्य करने को रख दिया है। वो चाहता है कि हम राज्य के लिए कार्य करें, यह वे बातें है जिन्हें करने के लिए वो हमारी अगुवाई करता है; पर वो नहीं चाहता कि हम केवल उन धार्मिक कार्यों में ही व्यस्त रहें, यह सोचते हुए कि वो हमारे बलिदानों के साथ प्रसन्न है जो उसने हमसे करने के लिए कहें ही नहीं थे। लोग अगर उन्होंने परमेश्वर से यह सुनने के लिए समय ही नहीं निकाला कि उन्हें क्या करना चाहिए तो वो परमेश्वर के कार्य कैसे कर सकते हैं?


आज आप के लिए परमेश्वर का वचनः परमेश्वर से पूछें कि वो क्या चाहता है कि आप उसके लिए करें, और फिर अपने पूरे हृदय के साथ इसे करें।

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