
क्योंकि प्रभु का मन (सलाह और उद्देश्य) किसने जाना है कि उसे सिखाएँ? परन्तु हममें मसीह का मन है। -1 कुरिन्थियों 2:16
परमेश्वर को निर्देश देना, परामर्श देना, या दिशा निर्देश देना हमारा काम नहीं है। अपने वचन में वह इस बात को स्पष्ट करता है कि उसे इस बात की आवश्यकता नहीं है कि हम उसे बताएँ कि क्या चल रहा है या उसे बताएँ कि उसे इसके विषय में क्या करने की ज़रूरत है। “क्योंकि यहोवा कहता है, मेरे विचार और तुम्हारे विचार एक समान नहीं है, न तुम्हारे मार्ग और मेरे मार्ग एक से हैं, क्योंकि मेरे और तुम्हारे मार्ग में और मेरे और तुम्हारे सोच विचारों में, आकाश और पृथ्वी का अंतर है।” (यशायाह 55:8-9)
उसकी बातों पे ध्यान देना और उसे हमसे कहने देना कि क्या चल रहा है और हमें इसके विषय में क्या करना है यह हमारा काम है-बाकि सब कुछ उसके ज्ञान और उसके इच्छा के अनुसार होने के लिए उसके ऊपर छोड़ देना न कि हमारी इच्छा के अनुसार। कभी कभी हम यह सच्चाई भूल जाते हैं इसलिए परमेश्वर को हमसे कहना पड़ता है, “तुम क्या सोचते हो कि तुम कौन हो? अपनी अधिनता के जगह में वापस जाओ और मेरे अधिकारी बनने से रूक जाओ।”
मैं एक समय याद करती हूँ जब मैं बहुत अधिक परिश्रम कर रही थी कि कल्पना करूँ कि कोई बात कैसी होगी जबकि परमेश्वर मुझे इस प्रकार से कल्पना करने से मुक्ति दिलाने का बहुत से प्रयास कर रहा था। अतः उसने मुझसे कहा, “जॉयस, क्या तुम नहीं समझती कि यदि तुम कभी मेरी कल्पना कर पाओ तो मैं परमेश्वर नहीं रहूँगा?”
परमेश्वर परमेश्वर है और हम परमेश्वर नहीं है। हमें यह सत्य जानने की और अपने आपको उसके भरोसे छोड़ने की ज़रूरत है। क्योंकि वह हमसे हर पहलु और हर क्षेत्र में महान है। हम उसके स्वरूप में बनाए गए हैं, परन्तु वह अब भी हमसे ऊँचा है और हमसे परे है। उसके विचार और मार्ग हमसे उच्च हैं। यदि हम उसकी सुनते और उसके आज्ञाकारी रहते हैं वह हमें अपना मार्ग सिखाएगा। परन्तु हम कभी भी उसकी कल्पना नहीं चाह रहे हैं। यहाँ तक कि हमें प्रयास भी नहीं करना चाहिए।