सचेत हो, और जागते रहो (अच्छे स्वभाव का और सौम्य); क्योंकि तुम्हारा विरोधी शैतान गर्जनेवाला सिंह के समान इस खोज में रहता है कि किस को फाड़ खाए। विश्वास में दृढ़ होकर, और यह जानकर उसका सामना करो कि तुम्हारे भाई जो संसार में हैं ऐसे ही दुःख सह रहे हैं। -1 पतरस 5:8-9
संयमी होना स्वयं नियन्त्रित होना है और स्वयं में होना समझदार होना है। इसलिए यहाँ पर मुझसे और आप से कहा गया है कि हम सन्तुलित हों, आत्म-नियन्त्रित हों, समझदार हों, जड़ पकड़े हुए हों, स्थापित हों, सामर्थी हों, अटल हों और दृढ़ हों। इस भाग के अनुसार हम किस प्रकार से शैतान को पराजित करने और हम पर उसके शारीरिक और भावनात्मक आक्रमणों का सामना करने जा रहे हैं? मसीह में जड़ पकड़ने और स्थिरता पाने के द्वारा। शैतान हमारे मन में भावनाओं के साथ आ सकता है परन्तु हमें अपनी भावनाओं के अधीन नहीं होना है। हम दृढ़़तापूर्वक उनके विरोध में खड़े हो सकते हैं यहाँ तक कि वे हमारे विरूद्ध आक्रमण करें और चाहे हमारे भीतर भी।
जब समस्याएँ उठ खड़ी होती हैं, और वे समय समय पर आते हैं हमें यह कल्पना नहीं करनी है कि प्रभु बिना किसी निमन्त्रण के हस्तक्षेप करेगा और हमारी सभी समस्याओं को हमारे लिए समझाएगा। हमें प्रार्थना करनी और उससे अपनी परिस्थितियों को बदलने के लिए माँगना है और हमें निरंतर और कभी नहीं बदलना है जो शत्रु के दृढ़ होनेवाले पतन और विनाश का चिन्ह होगा। क्या आप जानते हैं कि हमारी दृढ़ता और निर्भयता शैतान के लिए यह चिन्ह क्यों है कि वह पराजित होगा? क्योंकि वह जानता है कि वह विश्वासियों पर दृढ़ता और निश्चयता के साथ ही विजय पा सकता है। वह किसी ऐसे व्यक्ति को कैसे धमकी दे सकता है जो नहीं आता हो। वह किसी ऐसे व्यक्ति को कैसे धोखा दे सकता है जो उसके झूठों को पहचानता है और उस पर विश्वास करने से मना करता है। एक ऐसे व्यक्ति के भय को या उसकी निराशा को झिंझोरने से उसे क्या लाभ होगा जिसने वचन में दृढ़ बने रहने का चुनाव किया हो? जब शैतान देखता है कि उसकी नीतिया कार्य नहीं कर रही हैं तब समझता है कि वह पराजित हो रहा है और पूरी रीति से हार जाएगा।