मैं किस से बोलूं और किसको चिता कर कहूं कि वे मानें? देख, ये ऊंचा सुनते हैं, वे ध्यान भी नहीं दे सकते; देख, यहोवा के वचन की वे निन्दा करते और उसे नहीं चाहते हैं। (यिर्मायाह 6:10)
हर बार जब परमेश्वर हम से बात करता है, और हम ऐसे कार्य करते जैसा हम ने उसे सुना ही नहीं तो हमारे दिल थोड़े और ज्यादा बेदर्द बन जाते है और फिर इस हद तक पहुँच जाते जहां पर उससे सुनना बहुत ज्यादा मुश्किल हो जाता है। अंत, हमारा हठीलापन उससे सुनने की हमारी योग्यता को बिल्कुल ही मंद कर देता है। हर बार जब हम जो जानते कि सही है की तरफ हमारी पीठ फेर लेते है, हम थोड़ा और हठी बन जाते है और फिर हम पूरी तरह उसकी अगुवाई के लिए बहरे बन जाते है।
आज के लिए वचन में, हम देखते है कि परमेश्वर चाहता था कि यिर्मायाह उसके लोगों को निकटतम विनाश के बारे में बताए, पर वो उसकी आवाज को सुनने में अयोग्य थे क्योंकि उनके कान खतनारहित थे (परमेश्वर के साथ वाचा में नहीं)। कितने दुख की बात है।
तुलना में, हम यूहन्ना 5:30 में देखते है कि यीशु के पास पवित्र किए (अलग किए गए), खतना किए गए कान थे। मैं विश्वास करती हूं कि बाइबल में परमेश्वर के सुनने के विषय पर महत्वपूर्ण आयतों में एक हैः “मैं अपने आप से कुछ नहीं कर सकता; (मेरे अपने से, आजादी के साथ कुछ नहीं-पर केवल जो परमेश्वर द्वारा मुझे सिखाया जाता और जैसा मुझे उसके आदेश मिलते है) जैसा सुनता हूं, वैसा न्याय करता हूं, (मैं ऐसे निर्णय करता जैसा मुझे निर्णय करने का आदेश मिलता है। जैसे आवाज मेरे पास आती है, मैं एक निर्णय करती हूं) और मेरा न्याय सच्चा है; (धर्मी, न्यायसंगत) क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं, {जो मुझे प्रसन्न करता मुझे वो करने की कोई इच्छा नहीं है, मेरा अपना लक्ष्य, मेरा अपना उद्देश्य} परन्तु अपने भेजने वाले की इच्छा चाहता हूं।
यीशु ने तब तक कुछ नहीं किया जब तक इसके संबंध में उसने पिता की आवाज को नहीं सुना। कल्पना करें कि हमारे जीवन कितने भिन्न होंगे जब हम उसकी सलाह के बिना हमारे अपने मार्गों पर जाकर स्वयं के द्वारा लाई गई गड़बड़ी से बचने को उसे पुकारने से पहले, बाहर कदम बढ़ाने से पहले ही परमेश्वर से पूछ कर जाएं।
आज आप के लिए परमेश्वर का वचनः निर्णय करने से पहले अपने दिल की सुनें।