इससे तू क्या, वरन् ये लोग भी जो तेरे संग हैं निश्चय थक जाएँगे, क्योंकि यह काम तेरे लिए बहुत ही भारी है; तू इसे अकेला नहीं कर सकता। -निर्गमन18:18
मैंने अनुभव से सिखा है कि उचित सिमाएँ और हाश्यिा रखना बुद्धिमानी की बात है, यह सामथ्र्य का चिन्ह है कमज़ोरी का नहीं। सहायता माँगना भी एक अच्छी बात है। परमेश्वर ने हम में से प्रत्येक के जीवन में हमारी सहायता करने के लिए कुछ लोगों को रखा है। यदि हम उनकी सहायता नहीं देते हैं तो हम निराश, और काम के बोझ से दबे हो जाते हैं और वे अपूर्ण महसूस करते हैं, क्योंकि वे अपने वरदान का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। स्मरण करें कि परमेश्वर ने आपको प्रत्येक परिस्थिती में सबके लिए सब कुछ करने को नहीं बुलाया है। आप हर समय हर किसी के लिए सब कुछ नहीं हो सकते हैं। आपकी उचित ज़रूरते हैं।
सहायता की ज़रूरत होना और उसे माँगना गलत नहीं है, फिर भी सहायता की ज़रूरत होना और उसे माँगने में बहुत घमण्डी होना गलत है। निर्गमन 18:12-27 में हम देखते हैं कि मूसा एक उत्तरदायी व्यक्ति था। लोग हर बात के लिए उसकी तरफ़ देखते थे और वह उनकी सारी ज़रूरतें पूरी करने का प्रयास करते थे। मूसा के ससुर ने सलाह दी कि मूसा कुछ लोगों को अपने अधिकार को बाँटने के लिए तैयार करे। उसने कहा कि मूसा को उन्हें कम महत्वपूर्ण होने देना चाहिए और मूसा को बड़े मुद्दों के साथ ही व्यवहार करना चाहिए।
मूसा ने वह किया जो उसके ससुर ने कहा था और इस बात ने उसे अपने कार्य के तनाव को सहने के लायक बनाया। और दूसरे लोगों को अपने द्वारा बनाए गए निर्णयों का लाभ मिला। बहुत से लोग सभी समय या तो इस विषय में शिकायत करते हैं कि उनसे क्या करने की अपेक्षा की जाती है या भावनात्मक और भौतिक रूप से पतन या पतीत हो जाते हैं क्योंकि वे किसी को अपनी सहायता में कुछ भी नहीं करने देते हैं। वे किसी को भी अपने समान कार्य को करने के लिए योग्य नहीं समझते हैं।
यह आसान है कि हम स्वयं को अधिक महत्वपूर्ण समझे जितना हम हैं नहीं। कार्य को बाँटना सिखिए। जितने अधिक लोग आपकी सहायता कर सकते हैं उतना करने दीजिए। यदि आप ऐसा करते हैं तो आप दीर्घकाल तक बने रह सकते हैं और अधिक आनंद पा सकते हैं।