प्रबल होनाः विजय पाने का ठोस साधन

प्रबल होनाः विजय पाने का ठोस साधन

यीशु ने उसको उत्तर दिया, परमेश्वर पर विश्वास रखो। मैं तुम से सच कहता हूँ कि जो कोई इस पहाड़ से कहे, ‘तू उखड़ जा, और समुद्र में जा पड़,’ और अपने मन में संदेह न करे, वरन् प्रतीति करे कि जो कहता हूँ वह हो जाएगा, तो उसके लिए वही होगा। -मरकुस 11:22-23

जब यीशु ने कहा कि हमें अपने पर्वतों से विश्वास से बात करनी चाहिए। उन्हें आदेश देना है कि वहाँ से उठ और समुद्र में जा पड़। यह एक विद्रोही कथन है, और इसका अध्ययन करने की ज़रूरत है। सब से पहले हम अपने जीवन में पहाड़ों से क्या कहते हैं? यह प्रगट है कि हमें अपनी इच्छाओं को उन पर नहीं डालना है परन्तु परमेश्वर की इच्छाओं को और उसकी इच्छा उसका वचन है।

लूका 4 में यीशु की जब शैतान के द्वारा जंगल में परीक्षा हुई, तब उसने उसकी प्रत्येक परीक्षा का उत्तर परमेश्वर के वचन के द्वारा दिया। उसने बारम्बार कहा, “यह लिखा है,” और वचन को उद्धत किया जो शैतान के झूठ और घोखे को दूर करता था। उसका एक तरीका है कि कुछ समय तक उसे “परखो,” और तब जब हम कुछ परिणाम नहीं पाते हैं हम अपनी समस्याओं से बात करना बंद कर देते हैं और अपनी भावनाओं से बात करना प्रारंभ कर देते हैं। जो शायद हमें पुनः समस्या में डाल देते हैं।

एक पत्थर काटने वाला निन्यानवे बार अपने हथौड़े से पत्थर को चोट मारे और हो सकता है कि पत्थर के टूटने के कोई लक्षण न दिखाई दे। तब सौ बार वह आधे टूकड़ों में टूट सकता है। परन्तु हर एक ठोकर उस पत्थर को कमज़ोर कर रहा था, यद्यपि उसमें कुछ भी टूटने के संकेत नहीं थे। प्रबलता विजय का एक सिद्ध चिंह है। हमें अवश्य जानना चहिए कि हम क्या विश्वास करते हैं, और जब तक परिणाम नहीं देखते हैं उस पर बने रहने की दृढ़ता होनी चाहिए।

Facebook icon Twitter icon Instagram icon Pinterest icon Google+ icon YouTube icon LinkedIn icon Contact icon