
कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है। -1 कुरिन्थियों 13:6
प्रेम अन्याय से दुखित होता है। वह हमेशा उचित और सही बात कहता है। वह न्याय को केवल अपने लिए परन्तु विशेष करके अन्य लोगों के लिए चाहता है। मैं लोगों के साथ दुर्व्यवहार देखना पसंद नहीं करती हूँ। मैंने अपने जीवन में बहुत पीड़ा सही है और मैं अच्छी रीति से स्मरण करती हूँ कि यह कैसा महसूस होता है।
हमें दूसरों के विषय में और उनके पीड़ा के विषय में चिंता करनी चाहिए, उनके लिए प्रार्थना करनी चाहिए और उनकी पीड़ा की मुक्ति के लिए जो कर सकते हैं वह करना चाहिए। प्रेम भावनारहित नहीं है वह अन्यायी परिस्थितियों को देख कर बिना चिंता किए या बिना कुछ किए रह नहीं सकती है। संसारिक मानसिकता ‘‘मुझे इससे कोई परेशानी नहीं है यह आपकी समस्या है।’’ इसका मसीहियों के जीवन में कोई स्थान नहीं है।
स्पष्टतः हम भौतिक या आर्थिक रूप से हर किसी की समस्या को सुलझा नहीं सकते हैं परन्तु उनकी चिंता कर सकते हैं। पवित्र आत्मा के साथ हम यह सुनिश्चित करने के लिए कार्य कर सकते हैं कि यह हम अपने चारों ओर के हर प्रकार के हिंसा और अन्याय के प्रति अपने हृदय को कठोर होने नहीं देंगे।
परमेश्वर प्रेम है, और वह धार्मिकता से प्यार करता है। यह जानकर कि आप परमेश्वर के साथ सही हैं-सही व्यवहार करना, सही बात करना इत्यादि। वे जो प्रेम में चलते हैं उन्हें धार्मिकता से भी प्यार करना चाहिए। भजन संहिता 97:10 कहता है कि, यदि हम प्रभु से प्रेम करते हैं तो हमें बुराई से घृणा करना है। वे जो धार्मिकता से प्यार करते हैं अक्सर सताए जाते हैं-यीशु सताए गया और हम अपने स्वामी से बढ़कर नहीं है (मत्ती 10:24 देखिए)। बुरे लोगों से घृणा मत कीजिए उनके बुरे मार्गों से घृणा कीजिए। परमेश्वर पाप से घृणा करता है परन्तु वह पापियों से प्यार करता है।
अन्याय और अधार्मिकता से घृणा करते हुए प्रेम में चलते रहें और परमेश्वर का अनुग्रह एक अद्भुत रीति से आपके जीवन के ऊपर आएगा।