
इस पर उसने (यीशु ने) एक बालक को पास बुलाकर उनके बीच में खड़ा किया, और कहा, मैं तुम से सच सच कहता हूँ कि जब तक तुम न फिरो (बदलो, मुड़ो) और बालकों के समान (भरोसा करने वाले,दीन, प्रेमी, क्षमा करने वाले) न बनो, तुम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने नहीं पाओगे। जो कोई अपने आपको इस बालक के समान छोटा करेगा, वह स्वर्ग के राज्य में बड़ा होगा। -मत्ती 18:2-4
लूका 18:17 में यीशु ने इसी समान संदेश को बचपना या बच्चे के समान होने के विषय में अभिव्यक्त किया। जब उसने कहा, “मैं तुम से सच सच कहता हूँ जो कोई परमेश्वर के राज्य को एक बच्चे समान स्वीकार नहीं करता, प्राप्त नहीं करता, और स्वागत नहीं करता वह उसमें किसी प्रकार प्रवेश नहीं करेगा।” जैसा के हम देखते हैं एम्पलीफाएड बाइबल में मत्ती 18:3 कहता है कि एक बच्चे का गुण हैं भरोसा रखना, दीन होना, प्रेमी होना, क्षमा करना। हम अपने जीवन का कितना अधिक आनंद उठा सकते हैं यदि हम उन चार मूल्यों के अनुसार अपने जीवन को चलाएँ।
बच्चे वह विश्वास करते हैं जो उनसे कहा जाता है। कुछ लोग कहते हैं कि बच्चे चंचल होते हैं। इसका अर्थ है कि बच्चे कुछ भी विश्वास कर लेते हैं चाहे वह कितना भी खराब या बुरा लगे। परन्तु बच्चे चंचल नहीं है वे भरोसा करते हैं। भरोसा करना बच्चे का स्वभाव है जब तक वह कुछ ऐसा अनुभव न कर ले जो उसे सिखाई गई बातों से विपरित हो। एक बात जो हम सब एक बच्चे के विषय में जानते हैं कि वे जीवन का आनंद उठाते हैं। एक बच्चा किसी भी चीज़ का आनंद उठा सकता है। एक बच्चा कार्य को खेल में बदल सकता है क्योंकि वह उसका आनंद उठाने में समथ्र्य होता है।
मैं स्मरण करती हूँ जब मैंने अपने बेटे से बाहर झाड़ू लगाने के लिए कहा जब वह मात्र बारह या ग्यारह साल का था। मैंने बाहर देखा और पाया कि वह झाड़ू के साथ नाच रहा था और अपने कानों में इयरफोन लगाकर गाना सुन रहा था। मैंने सोचा अद्भुत! उसने झाड़ू लगाने को एक खेल में बदल दिया। हम सबका यही स्वभाव होना चाहिए। हमको झाड़ू के साथ डान्स करने की ज़रूरत नहीं है परन्तु हमको जीवन के हर पहलु का आनंद उठाने का चुनाव करना चाहिए।