बात करना और सुनना

हे मेरे राजा, हे मेरे परमेश्वर, मेरी दोहाई पर ध्यान दे, क्योंकि मैं तुझी से प्रार्थना करता हूं। (भजन संहिता 5:2)

प्रार्थना बहुत साधारण है; यह परमेश्वर के साथ बात करने और जो वह कहता उस को सुनने से बढ़कर और कुछ नहीं है। परमेश्वर हम में से प्रत्येक को व्यक्तिगत ढंगों में उसकी आवाज को सुनना और प्रार्थना करना सिखाना चाहता है। वह हमें जैसे भी हम है वैसे ही हमें लेकर हमारी अपनी अनूठी प्रार्थना की ताल को खोजने ओर एक ऐसी प्रार्थना शैली को विकसित करने में सहायता करना चाहता जो उसके साथ हमारे संबंध को अधिकतम बनाए। वह चाहता है कि प्रार्थना एक आसान, स्वाभाविक, उसके साथ संचार करने का जीवन देने वाला ढंग हो जब हम हमारे दिलों को उसके साथ बाँटते और हमारे साथ उसके दिल को बाँटने की उसे अनुमति देते है।

परमेश्वर पृथ्वी पर हरेक व्यक्ति को उसी ढंग में प्रार्थना के द्वारा अपने साथ संपर्क करना सिखाने में बहुत क्रियाशील है। उसने हम सब को भिन्न रीति में बनाया है और वह हमारी भिन्नता में प्रसन्न होता है। हम सभी उसके साथ हमारी यात्रा में भिन्न-भिन्न स्थानों पर है; हम आत्मिक परिपक्वता के भिन्न-भिन्न स्तरों पर है; और परमेश्वर के साथ हमारे भिन्न-भिन्न अनुभव रहे है। जब हम परमेश्वर से बात करने और उसकी आवाज सुनने की हमारी योग्यता में वृद्धि करते है, तब हमें निरंतर परमेश्वर को कहने की आवश्यकता होती है, “मुझे प्रार्थना करना सिखाएं; आपसे बात करने और उन ढंगों में आपको सुनना मुझे सिखाएं जो मेरे लिए उत्तम है। एक व्यक्तिगत स्तर पर अपनी आवाज सुनना मुझे सिखाएं। परमेश्वर, प्रार्थना में मुझे प्रभावी बनाने और प्रार्थना के द्वारा आपके साथ मेरे संबंध को घनिष्ठ, जीवन में सबसे बहुमूल्य पहलू बनाने के लिए मैं आप पर निर्भर हूँ।”


आज आप के लिए परमेश्वर का वचनः आप परमेश्वर की अनूठी सृष्टि है इसे अपने जीवन में और आपके प्रार्थना जीवन में जश्न मनाएं।

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