भ्रमित मन

भ्रमित मन

फिर भोर को जब वे उधर से जाते थे तो उन्होंने उस अंजीर के पेड़ को जड़ तक सूखा देखा। पतरस को वह बात स्मरण आई, और उस ने उस से कहा, ‘‘हे रब्बी, देख! यह अंजीर का पेड़ जिसे तू ने स्राप दिया था सूख गया है। यीशु ने उस को उत्तर दिया, परमेश्वर पर विश्वास रखो। मैं तुम से सच कहता हूँ कि जो कोई इस पहाड़ से कहे; ‘तू उखड़ जा, और समुद्र में जा पड़’, और अपने मन में सन्देह करे, परंतु विश्वास करे, कि जो कहता हूँ वह हो जाएगा, तो उसके लिए वही होगा। इसलिए मैं तुम से कहता हूं, कि जो कुछ तुम प्रार्थना करके माँगो, तो प्रतीति कर लो कि तुम्हें मिल गया, और तुम्हारे लिये हो जाएगा। – मरकूस 11:20-24

जब आप कहते हैं मैं आश्चर्य करता हूँ, तो इन शब्दों में एक मासूमियत और इमानदारी झलकती है। वे निर्णय लेने में हमारी अनिश्चितता को भी प्रतिनिधित्व करते हैं।

मान लीजिए आप किसी व्यवसाय के मुख्य कार्यपालन अधिकारी हैं। प्रतिदिन आपके दफतर में बीस लोग आते हैं, और आप से निर्णय लेने के लिए कहते हैं। उस कॉर्पारेशन में जो कुछ चल रहा है, उसके लिए आप का उत्तर अंतिम है। धोखा देनेवाले उत्तरों के बजाय, आप अपने …. को गुजराते हुए खिड़की से बाहर देखते हैं और कहते हैं, ‘‘मुझे आश्चर्य हो रहा है।’’ मुझे मालूम नहीं कि इसके विषय में हमें क्या करना चाहिए?

एक अनिर्णायक स्थिति वाला कार्यपालन अधिकारी उस स्थिति में बहुत दिन तक नहीं टिक सकता है। क्योंकि यह पद उस संस्था के ओर संबन्धित सभी लोगो के भलाई और महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। आप इस पद पर आश्चर्य करने के लिए नहीं हैं। वहां पर आपको कार्य करने के लिए बैठाया गया है।

हम में से बहुत लोग यह भूल जाते हैं कि मसीही जीवन में भी इसी प्रकार होता है। हमें जो करना चाहिए उसे चुनने के बजाय हम स्थिति को अनदेखा करते हैं और कहते हैं, ‘‘मुझे नहीं मालूम।’’

मैं यह जानती हूँ, क्योंकि मैंने इसे किया है। पुराने समय में जब किसी पार्टी में आमन्त्रित की जाती थी, या अक्सर किसी पार्टी में मुझे बुलाया जाता था तो मैं कहती थी, ‘‘पता नहीं मैं क्या पहनूं।’’ मेरे लिए बहुत आसान था कि मैं उन्हें अलमारी में कपड़े खोजते हुए बहुत समय बर्बाद करूँ, और मैं उसका रंग और स्टाइल का चुनाव करूँ ताकि मैं उस पार्टी में सही कपड़े पहन सकूँ।

यह बहुत छोटी बात दिखती है और यह है भी। समस्या यह है कि यदि हम इस प्रकार के आश्चर्यों को अपने जीवन में पर्याप्त मात्रा में स्थान देंगे, तो न केवल हम उन चीजों को करने में हार जाते हैं जो हमें करना चाहिए। परन्तु आश्चर्य करना हमारे मन का सामान्य क्रिया बन जाएगा। अनिर्णायक होना हमें आगे बढ़ने से रोकता है और अवश्यः हमें हरा सकता है।

आगे दिए गए पदों में घटना का प्रारम्भ एक अंजीर के पेड़ से होता है जिसमें फल नहीं था। शिष्यगण उस अंजीर के पेड़ के फल न होने के कारणों पर विचार विमर्श करते हुए बहुत समय व्यतीत कर दिए थे। वे यह सोच के आश्चर्य कर सकते थे कि उसे पर्याप्त सूर्य प्रकाश या पानी नहीं मिला हो। वे सोच सकते थे कि उसका मालिक उसे काट क्यों नही डाला, जब कि उस में फल नहीं लगते? परन्तु इस प्रकार से आश्चर्य करते हुए समय व्यतीत करना वास्तव में अनिवार्य नहीं था।

परन्तु जब यीशु ने बात किया और पेड़ को शाप दिया, तब उस ने किसी भी प्रकार के मानसिक कल्पनाओं पर विराम लगा दिया। उसने इस घटना को एक दृश्यों के लिए दृश्य पाठ के रूप में इस्तेमाल किया, ताकि उन्हें विश्वास करने के लिए उत्साहित करे। वह उन्हें समझाना चाहता था कि यदि वे सच में विश्वास करते हैं तो वे जो कुछ माँगेंग वे प्राप्त करेंगे।

कभी कभी परमेश्वर के लोग साहस पूर्वक बड़ी बातों को माँगने से कतराते हैं। परन्तु यीशु ने हमें अनुमति दिया है कि हम विश्वास में कदम बढ़ाएँ और हम माँगे। परंतु अभी भी कई लोग आश्चर्य करते हुए समय निकाल देते हैं। वे इस बात पर आश्चर्य करते हैं कि कैसा होगा यदि परमेश्वर उन्हें एक और अच्छी नौकरी दे दे। वे आश्चर्य करते हैं कि यदि परमेश्वर उन्हें एक बड़ा घर दे दे तो क्या होगा?

मैं आप से कह सकती हूँ कि आश्चर्य करना समय की बर्बादी है। इसलिए आश्चर्य करना छोड़ दें और काम करना शुरू करें। यह एक महत्वपूर्ण बात है कि मैंने आश्चर्य करनेवाले मन के विषय सिखा है। पार्टी में मुझे क्या पहनना है, इस पर आश्चर्य करने के बजाय मैं अपने कपड़े को देखती हूँ और निर्णय लेती हूँ। परमेश्वर ने मुझे सही चुनाव करने की योग्यता दी है। आश्चर्य करना और अनिर्णय की स्थिति में रहना हमारे मनो में दृढ़ गढ़ बन सकता है, जो हमे असुरक्षित और अप्रभावित बना सकता है। परन्तु यह परमेश्वर की योजना नहीं है। वह चाहता है कि हम आश्चर्य करनेवाले विचारों पर विश्वास के द्वारा विजय पाए और विश्वास के द्वारा परमेश्वर से प्रार्थनाओं का उत्तर पाए। ध्यान दें कि यीशु ने यह नहीं कहा, जिन चीजों पर आप आश्चर्य करेंगे आप को प्रार्थनाओं के द्वारा मिल जाएँगी। बजाय उसने कहा, ‘‘प्रार्थना में जो कुछ माँगेंगे और विश्वास करेंगे वह तब आप प्राप्त करेंगे।

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‘‘प्रभु यीशु किसी भी आश्चर्य करनेवाले स्वभाव पर मुझे विजय दें, जो मुझे आपकी योजना में बढ़ने से रोकती हैं। आपके नाम में मैं माँगती हूँ कि अपने विश्वास में आप तक पहुँचू और साहस पूर्वक मेरी जरूरतों को मैं माँगू। और तब उसे करने और पाने में मेरी सहायता करें। आमीन।’’

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