
तुम्हारा वचन सदा अनुग्रह सहित (सुखकर, और दिल जीतने वाला) और सलोना हो (ताकि तुम्हे कभी नुकसान न हो) कि तुम्हें हर मनुष्य को उचित रीति से उत्तर देना आ जाए। – कुलुस्सियों4:6
संपूर्ण नए नियम में हम मसीह को दो विपरित तरीकों से कार्य करते देखते हैं। उसने मन्दिर में धन का कारोबार करनेवालों का सामना किया, उनके मेजों को उलट दिया और दृढ़तापूर्वक उन सबको परमेश्वर की इच्छा का वर्णन किया जो उससे देख रहे थे। उसने उनसे कहा, “लिखा है, मेरा घर प्रार्थना का घर कहलाएगा; परन्तु तुम उसे डाकुओं का खोह बनाते हो।” (मत्ती 21:13) फिर भी दूसरे जगह पर हम यीशु को गलत रूप से आरोपित किया हुआ देखते हैं जहाँ पर वह अपने बचाव में एक शब्द भी नहीं कहते है। इसलिए हमें इस संवाद की विधियों से क्या सीखना है? वह एक सिंह था जब उसे ऐसा होने की ज़रूरत थी और फिर भी वह एक मेम्ना था – उसने कभी पाप नहीं किया था बातचीत में श्रेष्ठ होने से कभी पराजित नहीं हुआ। जब कोई आपके विरूद्ध आता है तब स्वयं का बचाव नहीं करने का आपके लिए यह एक चुनौती है। अपमान को अनदेखा करना और प्रतिकार न करना कठिन है। यशायाह 53:7 यीशु के विषय में कहता है, “वह सताया गया, तौभी वह सहता रहा और अपना मुँह न खोला; जिस प्रकार भेड़ वध होने के समय और भेड़ी ऊन कतरने के समय चुपचाप शांत रहती है, वैसे ही उसने भी अपना मुँह न खोला।”
कभी कभी मैं पाती हूँ कि कठिन बातों में से एक जो परमेश्वर ने हम से करने के लिए कहा है वह दूसरों के साथ हमारे संवाद में मसीह के समान होना है। जब कोई कठोर होता है और आपसे बात करता है या अपमानित करता है तो यूँ ही वहाँ खड़े रहना और उन्हें मसीह के समान होने के लिए ईश्वरीय प्रेम के साथ देखते रहना और परमेश्वर की बाट जोहना कठिन है। परमेश्वर का धन्यवाद करें वह हमें बदलने और मसीह के समान होने का सामथ्र्य देता है। मैं अब भी अपने पुराने स्वभाव की प्रतिक्रिया महसूस करती हूँ परन्तु मैं अधिकाधिक आत्म संयम सीख रही हूँ। उन्नति की कुन्जी सामना करना सीखना है। जब परमेश्वर कहता है कि सामना करो तब मुझे सामना करना है और किसी मुद्दे को छोड़ देना है जब परमेश्वर छोड़ देने के लिए कहता है।