परन्तु धर्मियों की चाल उस चमकती हुई ज्योति के समान है, जिसका प्रकाश दोपहर तक अधिक अधिक बढ़ता रहता है। – नीतिवचन 4:18
मैं नहीं पहुँचा हूँ न ही और कोई पहुँचा है। हम सब बनने की प्रक्रिया में हैं। मेरे अधिकांश जीवन में मैंने महसूस किया कि मैं कभी भी तब तक ठीक नहीं होऊँगी जब तक मैं पहुँच न जाऊँ परन्तु मैंने सिखा है कि यह सत्य नहीं है। मेरा हृदय यह सब करने की अभिलाषा करता है कि परमेश्वर जो चाहता है कि मैं होऊँ मैं यीशु के समान होना चाहती हूँ। मेरा शरीर हमेशा मेरे साथ सहयोग नहीं करता है। पौलुस रोमियों 7 अध्याय में कहता है कि जो भले काम वह करना चाहता है वह नहीं कर सकता और जो बुरे काम वह करना नहीं चाहता है वह कर बैठता है। वह हमेशा स्वयं को करते हुए देखता है। वह कहता है कि वह अपने आप में घृण से महसूस करता है। मैं इसे संबंधित कर सकती हूँ – आपके विषय में क्या है? 24 पद में वह पुकारता है, मैं कैसा अभागा मनुष्य हूँ! “मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा”? तब नीचे के पदों में मानो उसने एक उत्तर पा लिया हो जो उसके लिए एक प्रकाशन था। वह कहता है, “धन्यवाद परमेश्वर, मसीह यीशु हमारे प्रभु के द्वारा।”
हाँ, हम सबका एक जाने का मार्ग है। मैं इस विषय में परेशान थी कि मुझे कितना दूर जाना है और ऐसा लगता था कि शैतान मुझे रोज याद दिलाता था, कभी कभी तो हर घण्टे। मैं लगातार पराजय की भावना लिए चलती रही, एक भावना कि मैं वह नहीं थी जो मुझे होना चाहिए था कि मैं पर्याप्त भलाई नहीं कर रही थी और कि मुझे कठोर प्रयास करना चाहिए था – और फिर भी जब मैंने प्रयास किया मैं केवल अधिक पराजित हुई। मैंने अब एक नया स्वभाव विकसित किया है। “मैं वहाँ नहीं हूँ जहाँ मुझे होना चाहिए परन्तु धन्यवाद परमेश्वर का कि मैं वहाँ हूँ जहाँ पर मैं पहले रहा करती थी। मैं ठीक हूँ और मैं अपने रास्ते पर हूँ।”
अब मैं अपने सारे हृदय से जानती हूँ कि परमेश्वर मुझ से क्रोधित नहीं है क्योंकि मैं नहीं पहुँची हूँ। वह मुझ से प्रसन्न है कि मैं आगे बढ़ रही हूँ कि मैं अपने रास्ते पर हूँ। जब मैं और आप “आगे बढ़ते और बढ़ते रहेंगे” परमेश्वर हमारी प्रगति से प्रसन्न होगा। अपनी चाल को चलते रहें एक चाल कुछ ऐसी है जो एक बार में एक कदम आगे लिया जाता है। यह स्मरण करने के लिए एक महत्वपूर्ण बात है।