
और स्मरण रख कि तेरा परमेश्वर यहोवा उन चालीस वर्षों में तुझे सारे जंगल के मार्ग में से इसलिए ले आया है, कि वह तुझे नम्र बनाए, और तेरी परीक्षा करके यह जान ले कि, तेरे मन (और हृदय) में क्या है, और कि तू उसकी आज्ञाओं को पालन करेगा या नहीं। -व्यवस्थाविवरण 8:2
बाइबल कहती है कि परमेश्वर ने इस्राएलियों को नम्र बनाने, सुधारने, और यह देखने के लिए कि वे उसकी आज्ञाओं को मानते हैं या नहीं, चालीस साल जंगल में से होकर ले चला। परख कठिन समयों में आता है अच्छे समयों में नहीं। क्योंकि सब कुछ जो परमेश्वर हम से करने के लिए कहता है वह आसान नहीं है। इसलिए वह यह देखने के लिए हमारी परख करता है कि इससे पहले कि वह हमें एक ऊँचे स्तर के ज़िम्मेदारी में ले चले हम तैयार और योग्य हैं या नहीं। बहुत सी बातें हैं जो प्रतिदिन हमारे रास्ते पर आती हैं वे एक परख से बढ़कर कुछ नहीं है।
उदाहरण के लिए, हमें एक रेस्टोरेंट में बैठने के लिए काफ़ी इंतज़ार करना पड़ता है और उसके बाद खराब खाना परोसा जाता है यह एक परख है। कभी कभी जब हमारे अधिकारी हम से कुछ करने के लिए कहते हैं जो हम करना नहीं चाहते यह एक परख है। याकूब 1:2-4 कहता है कि परख वह है जो हममें है। परख के समय में ही हम स्वयं को अच्छी रीति से समझते हैं और हम क्या करने के योग्य हैं इसको समझते हैं। पतरस ने कभी नहीं सोचा था कि वह कभी यीशु केा इंकार नहीं करेगा परन्तु जब वह परख में डाला गया तो उसने ठीक वही किया। परमेश्वर इस बात से प्रभावित नहीं होता है जो हम कहते हैं कि करेंगे, वह उस बात से प्रभावित होता है कि जो हम प्रमाणित करते हैं कि दबाव के बीच में हम क्या करेंगे।
हम सेवकाई में आगे नहीं बढ़ते हैं क्योंकि बाइबल की हमारी समझ दो रंगो में है, परन्तु क्योंकि हमारी परीक्षा और परख होती है और हम गिर जाते और हम विजयी हो जाते हैं चाहे वो कठिन हो। याकूब लिखता है, “धन्य (प्रसन्न या ज्वलन रखनेवाले मनुष्य) है वह मनुष्य जो परीक्षा में स्थिर रहता है, क्योंकि वह खरा निकलकर जीवन का वह मुकुट पाएगा जिसकी प्रतिज्ञा प्रभु ने अपने प्रेम करनेवालों से की है।” (याकूब 1:12)