यीशु में हमारा विश्वास है

यीशु में हमारा विश्वास है

जो मुझे सामर्थ्य देता है उसमें मैं सब कुछ कर सकता हूँ। (मैं उसके द्वारा किसी  भी बात के लिए और किसी भी समान बात के लिए तैयार हूँ मेरे भीतर सामर्थ्य देता है; मैं मसीह में आत्मनिर्भर और पर्याप्त हूँ।)  -फिलिप्पियों 4:13

शैतान नहीं चाहता है कि आप अपने जीवन के लिए परमेश्वर की योजना को पूरा करें। क्योंकि वह जानता है कि आप उसके अनन्त पराजय के भाग है। यदि वह आपको ऐसा सोचने और विश्वास करने दे सकता है कि आप असमथ्र्य हैं तो आप कुछ ऐसा करने का प्रयास भी नहीं करेंगे जो लाभप्रद हो। चाहे आप ऐसा करने का प्रयास भी करें तो पराजित होने का आपका भय आपके पराजय को निर्धारित कर देगा जो शायद अपने विश्वास की कमी के कारण आपने प्रारंभ से ही अपेक्षा की है। इसे “पराजय की भावना” कहा जाता है या “पराजय का लक्षण माना जाता है।” शैतान चाहता है कि आप और मैं अपने विषय में बहुत बुरा महसूस करें कि हम स्वयं पर विश्वास न रख सकें।

परन्तु शुभ समाचार यह है किः हमें स्वयं में विश्वास की ज़रूरत नहीं है, हमें यीशु में विश्वास की ज़रूरत है! मैं स्वयं में विश्वास रखती हूँ केवल इसलिए कि मैं जानती हूँ कि मसीह मुझ में है जो हमेशा उपस्थित और मेरी हर चीज़ की सहायता करने के लिए तैयार है जो मैं उसके लिए करने का प्रयास करती हूँ। बिना विश्वास के एक विश्वासी उस हवाई जहाज़ के समान है जो रनवे से खड़ा है लेकिन उसमें इंधन नहीं है। वह बाहर से अच्छा दिखता है परन्तु उसमें भीतर सामर्थ्य नहीं है। हमारे भीतर यीशु के साथ वह करने की सामर्थ्य है जो हम कभी भी अपने आप में होकर नहीं कर सकते थे।

एक बार जब आप इस सत्य को सीख लेते हैं तब शैतान झूठ बोलता है और कहता है, “कि आप कुछ भी सही नहीं कर सकते हैं,” आपकी प्रतिक्रिया उसके लिए यह हो सकती है, “शायद नहीं। परन्तु यीशु में मैं यह कर सकता हूँ। और वह करेगा क्योंकि मैं उसमें विश्वास रखता हूँ और स्वयं पर नहीं। वह मेरे हर कार्य को सफ़ल करेगा जिसमें मैं हाथ डालता हूँ।” (होशू 1:7 देखिए) या शत्रु आपसे कहेगा, “तुम यह करने के योग्य नहीं हो, इसलिए प्रयास भी मत करो। क्योंकि तुम केवल पराजित होंगे और ठीक इसी प्रकार जैसे तुम भूतकाल में हुई हो।” आपकी प्रतिक्रिया हो सकती है “यह सत्य है कि बिना यीशु के मैं एक कार्य को भी करने में सक्षम नहीं हूँ; परन्तु उसके साथ और उसमें मैं वह सब कर सकती हूँ, जो मुझे करने की ज़रूरत है।” (फिलिप्पियों 4:13 देखिए)

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