परन्तु वचन पर चलनेवाले (संदेश का पालन करो) बनो, और केवल सुननेवाले ही नहीं जो अपने आपको धोखा (सत्य के विरूद्ध सोचने के द्वारा धोखे में डाल देते है) देते हैं। -याकूब 1:22
एक महिला जो मेरी सभा में उपस्थित हुई। उसके हाव भाव बहुत ही भयग्रस्त और असुरक्षित थे। वह स्वतन्त्र होने की अत्यधिक अभिलाषी थी, परन्तु कुछ भी नहीं हो पा रहा था। सभा के अंत में उसने मुझ से कहा, कि अब वह समझी कि उसने कभी कोई प्रगति का अनुभव क्यों नहीं किया। उसने कहा, “जॉयस, मैं महिलाओं की एक समूह के साथ बैठ गई, जिन सब की वैसी ही समस्याएँ थी जैसी मेरी थी। कदम कदम करके परमेश्वर उन्हें मुक्त कर रहा था। जब मैंने उन पर ध्यान दिया, तब मैंने उनको कहते हुए सुना, परमेश्वर ने यह करने के लिए मेरी सहायता की, और मैंने ऐसा किया। तब वह मुझे अन्य बातों को करने के लिए कहा और मैंने वह काम किया। मैं समझ गई कि परमेश्वर ने मुझ से भी यही करने के लिए कहा था। एक मात्र अंतर यह था कि उन्होंने वैसा किया जैसा परमेश्वर ने उनसे करने के लिए कहा था और मैंने नहीं किया।”
परमेश्वर से पाने के लिए जो उसने अपने वचन में वायदा किया था हमें अवश्य ही वचन को मानना चाहिए। ऐसे समय आएँगे जब वह करना आसान नहीं होगा जो वचन कहता है। वचन को मानने के लिए गाढ़ापन और परिश्रम की ज़रूरत होती है। परिणाम चाहे कुछ भी हो वचन के अनुसार करने के लिए समर्पण की ज़रूरत होती है। “हाँ”, आप कह सकते हैं, “परन्तु मैं लम्बे समय से वचन का पालन करता रहा हूँ और अब भी मेरे पास विजय नहीं है!” तब उसे थोड़ा और कीजिए। कोई भी जानता कि वचन को किसी जीवन में कार्य करना प्रारंभ करने में कितना समय लगने वाला है। यदि आप इसे करते रहेंगे तो अभी या बाद में वह काम करेगा।
मैं जानती हूँ कि यह एक लड़ाई है। मैं जानती हूँ कि शैतान आपको वचन से बाहर रखने का प्रयास करता है और एक बार जब आप वचन से बाहर निकलते हैं, तो वह अपने सामर्थ्य में प्रयास करता है कि आपको अपने जीवन में वचन का अभ्यास करने से दूर रखे। मैं यह भी जानती हूँ कि एक बार जब आप वचन को अभ्यास में लाएँगे, तो वह अपनी पूरी ताकत आपको यह सोचने में लगाएगा कि आप यह सोचे कि यह कार्य नहीं करता है। इसलिए आपको इसे करते रहना है आपको वचन में आने की इच्छा जागृत करने के द्वारा सहायता करने के लिए परमेश्वर से माँगे और चाहे यह कितना भी कठिन हो या आपके जीवन में यह फल लाने में कितना भी समय लगाए इसे कीजिए।