वास्तविक समस्याएँ

वास्तविक समस्याएँ

तुम्हारा स्वभाव लोभरहित हो, और जो तुम्हारे पास है, उसी पर सन्तोष करो; क्योंकि उसने आप ही कहा है, मैं तुझे कभी न छडूँगा, और न कभी तुझे त्यागूँगा।- इब्रानियों 13:5

हाल ही में मैंने वास्तविक समस्या और काल्पनिक समस्या के बारे में एक रोचक कहानी सुना। जिनका हम सब ने कभी ना कभी सामना किया है। यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी थी जो बाइबल कॉलेज में दूसरे वर्ष का विद्यार्थी था। उसे आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा और अपने बिलों के भूगतान के विषय में वह कुछ नहीं कर पाया, न ही अपने परिवार के खर्च के बारे में और बाइबल स्कूल में रहने के बारे में। वह और उसकी पत्नी अपनी दूसरे बच्चे का इन्तजार कर रहे थे, और स्वास्थ्य संबंधीत समस्याओं के कारण उसकी पत्नी को संपूर्ण विश्राम के लिए कहा गया था। अन्ततः उसने आर्थिक समस्या निवारण के दफ्तर में जा पहुँचा।

वह वहाँ अन्दर जाकर नर्भस होकर बैठ गया। तब वह व्यक्ति जो मेज के दूसरी तरफ बैठा हुआ था उसने एक रोचक प्रश्न पूछा। ‘‘आपको धन चाहिये, या क्या आपकी समस्याएँ वास्तविक है?’’

इस प्रश्न ने उसके जीवन को बदल दिया, क्यों? क्योंकि उसने धन को अपने जीवन का सबसे बड़ा और सुलझाने के लिये सब से कठिन समस्या के रूप में देखा था। उसके बिल और आर्थिक आवश्यकताएँ लगातार उसके मन में थी। यह ऐसा था मानो धन की उसकी आवश्यकता उसके जीवन का सब से महत्वपूर्ण भाग बन गया था।

इस से पहले कि इस जवान छात्र कुछ और कहता, आर्थिक परामर्शदाता मस्कुराए और उन्होंने कहा, ‘‘बहुत से छात्र इसलिए आते हैं क्योंकि उन्हें धन चाहिये। धन उनके जीवन का केन्द्र बन जाता है और यह उनके विजय और शान्ति को चुरा लेता है।’’

उस छात्र को ऐसा लगा मानों यह व्यक्ति उसके पत्रों को पढ़ता रहा है। उस क्षण वह उन छात्रों में से एक था जिस का वर्णन उस व्यक्ति ने किया था। दोनों छोरों के मिलाने के प्रयास में विजय और शान्ति उसके पास से चली गई थी।

इस बुद्धिमान आर्थिक परामर्शदाता ने उस दिन कुछ रोचक अवलोकन किए। उन्होंने कहा, ‘‘समस्या धन की नहीं है, बेटे, समस्या भरोसे की है। हमारे पास कुछ आर्थिक लोन है जिसे हम कर सकते हैं, परन्तु यह तुम्हारी समस्या को हल नहीं करेगा।’’ आप देखते हैं कि समस्या आपके मस्तिष्क और आपके हृदय के भीतर है। यदि आप उन चीजों को सही क्रम से रखेंगे, तो धन आपके जीवन का केन्द्र नहीं बना रहेगा।

‘‘इससे पहले किसी ने ऐसी बातें नहीं कही थी। न केवल आर्थिक परामर्शदाता ने मुझ पर दबाव बनाया कि मैं इस जीवन के विषय में पुनः सोचूँ और मेरी प्राथमिकताओं के विषय में,’’ उस छात्र ने कहा, परन्तु उसने मुझे सही दिशा दिखाई।

वह लोन सलाहकार ने अपनी बाइबल निकाली और छात्र को तीन पद पढ़ने के लिये कहा, जिस पर नीचे रेखाएँ खीची हुई थी और पीले रंग में रंगा गया था। मनुष्य की गति यहोवा की ओर से दृढ़ होती है, और उसके चलन से वह प्रसन्न रहता है; चाहे वह गिरे तौभी वह पड़ा न रह जाएगा, क्योंकि यहोवा उसका हाथ थामें रहता है। मैं लड़कपन से लेकर बुढ़ापे तक देखता आया हूँ; परन्तु न तो कभी धर्मी को त्यागा हुआ, और न उसके वंश को टुकड़े माँगते देखा है। (भजनसंहिता 37:23-25)।

‘‘बेटा अब स्वयं की ओर देखो,’’ उस व्यक्ति ने कहा। ‘‘क्या तुम एक भला मनुष्य हो? क्या तुम एक धर्मी व्यक्ति हो? यह तुम्हारे और परमेश्वर के संबन्ध के विषय क्या कहती है?’’

छात्र ने उन पदों को दो बार जोर से पढ़ा और उसने पहचाना कि यह शब्द उसी के चित्रण है। वह गिर गया था, उसने स्वयं को निराश होने दिया था और वह हार मानने के लिये तैयार था। परन्तु वह जानता था कि वह बाइबल कॉलेज़ में इसलिये है क्योंकि परमेश्वर चाहता था कि वह वहां पर हो।

जब उसने उस आर्थिक सहायता के दफतर को छोड़ा, तब उसे न ही धन मिला और न ही धन का प्रस्ताव। परन्तु वह एक हलके हृदय के साथ वहां से गया और एक निश्चयता के साथ कि उसे कॉलेज़ छोड़ने की आवश्यकता नहीं है। वह अपने कुछ बिलों के भूगतान के कारण थोड़ा धीमा था और ऐसा कभी कभी ही हुआ था। अपने ट्यूशन फीज़ को देने में उसे कुछ और मोहलत चाहिए था, परन्तु वह ठहरने के लिये और अपने अध्ययन को समाप्त करने में समर्थ था। वर्तमान में वह पूर्णकालिक सेवकाई पत्री में शामिल है।

परमेश्वर अपनों की चिन्ता करता है और वह आपकी भी चिन्ता करेगा। इब्रानियों 13:5 आपको यह निश्चयता देता है, कि आपको अपना ध्यान धन, चिन्ताओं और सोच पर नहीं लगाना है कि आप कैसे स्वयं का भार उठाऐगे। परमेश्वर ने आपकी चिन्ता करने की प्रतिज्ञा की है। इसलिये अभी क्या कहने के लिए है?

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सारे बहुमूल्य प्रतिज्ञाओं के परमेश्वर मैं शर्मिन्दा हूँ कि मैंने धन और अन्य समस्याओं को बहुत महत्वपूर्ण बनने दिया कि मैं अपना किमती समय खो दिया। मेरी समस्या धन नहीं है, मेरी समस्या तुझ पर भरोसे की कमी है। जब मैं आपकी प्रतिज्ञाओं पर ध्यान करता हूँ, मेरी सहायता कर कि मैं सच में विश्वास करूँ कि आप अपने वचन को मेरे जीवन में पूरा करेंगे। यीशु मसीह के नाम में मैं प्रार्थना करती हूँ। आमीन।।

 

 

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