विभिन्नता और विविधता

विभिन्नता और विविधता

और यहोवा परमेश्वर भूमि में से सब जाति के बनैले (जंगली) पशुओं, और आकाश के सब भाँति के पक्षियों को रचकर आदम के पास ले आया कि देखे कि वह उनका क्या क्या नाम रखता है; और जिस जिस जीवित प्राणी का जो जो नाम आदम ने रखा वही उसका नाम हो गया। अतः आदम ने सब जाति के घरेलू पशुओं, और आकाश के पक्षियों, और सब जाति के बनैले (जंगली) पशुओं के नाम रखे; परन्तु आदम के लिए कोई ऐसा सहायक न मिला जो उससे मेल खा सके। – उत्पत्ति 2:19-20

मुझे निश्चय है कि यदि आप इसके विषय में थोड़ा सा सोचते हैं आप सहमत होंगे कि हमारा परमेश्वर अद्भुत परमेश्वर है। यूहीं कुछ कदम चलें और अपने चारों तरफ़ देखें। यदि यह आपकी सहायता करेगा तो किताब को नीचे रखिए और अभी यह कीजिए। यह देखें कि समुद्र में क्या है या कैसे मधु मक्खियाँ कार्य करती हैं। तब समझें कि यही पवित्र आत्मा सृष्टि के समय उपस्थित था। वह आपके भीतर कार्य करता है यदि आपने सच में यीशु मसीह को अपना प्रभु और उद्धारकर्ता स्वीकार किया है (प्रेरितों 2:38 देखिए)।

हममें से हर एक के भीतर बहुत सारी रचनात्मकताएँ हैं जिसे हमें बिना भय के बाहर निकलना है। मैं सोचती हूँ कि हम अक्सर मसीह में पहुँच जाते हैं। हम एक ही कार्य हमेशा करते रहते हैं चाहे हम उससे ऊब जाएँ क्योंकि हम परिवर्तन से डरते हैं।

हम उत्तेजित होने और धार में जीने के बजाए सुरक्षित और उबाऊ हो सकते हैं। कुछ लोग अपने पूरे जीवन में नौकरी और व्यवसाय में लगे रहे हैं क्योंकि वे जो कर रहे हैं वह सुरक्षित है। वे अपनी नौकरी से घृणा कर सकते हैं और पूर्ण रूप से अपरिपूर्ण महसूस कर सकते हैं। परन्तु कुछ और करने का विचार उन्हें अवर्णनीय रूप से कराता है या हो सकता है वे एक परिवर्तन के विषय में सोचते और सपना देख सकते हैं। परन्तु उनका सपना कभी भी पूरा नहीं होगा क्योंकि वे पराजय से डरते हैं। मैं इस बात की सलाह नहीं देती कि हर किसी ‘‘खतरे”के मध्य में हम टूट जाए परन्तु साधारण से बाहर एक नई चीज़ में प्रवेश करने का एक निश्चित समय होता है।

परमेश्वर ने आपको और मुझे बनाया है कि हम भिन्नता और विविधता की ज़रूरत महसूस कर सकें। हमारे पास कुछ भी गलत नहीं है यदि हम तभी महसूस करते हैं कि हमें एक परिवर्तन की ज़रूरत है। दूसरी तरफ चाहे हम कुछ भी कर रहे हैं यदि हम कभी भी उससे बहुत समय तक संतुष्ट नहीं होते हैं तो हमें इसके विपरित समस्या होती है। परमेश्वर का वचन हमें निर्देश देता है कि हम संतुष्ट और संतृप्त रहें (इब्रानियों 13:5; 1 तीमुथियुस 6:6 देखिए)। सन्तुलन ही कुन्जी है।

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