परमेश्वर जो आशा का दाता है तुम्हें विश्वास करने में सब प्रकार के आनंद और शांति से परिपूर्ण करे, कि पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से तुम्हारी आशा बढ़ती (छलकती) जाए। -रोमियों 15:13
मैं एक शाम को स्मरण करती हूँ जब मैं बहुत अधिक असन्तुष्ट और निराशजनक महसूस कर रही थी। मुझ में कोई शांति या आनंद नहीं था और पूरी रीति से पीड़ाग्रस्त थी। मैंने रोमियों 15:13 पढ़ा और यह सचमुच में मेरे लिए “मौसम के अनुकूल शब्द था” (यशायाह 50:4 देखिए)। मेरी समस्या सरल थी। मैं विश्वास करने के बजाए शक कर रही थी। मैं परमेश्वर के निःशर्त प्रेम पर संदेह कर रही थी कि मैं उससे सुन सकती हूँ कि नहीं। मेरे जीवन पर उसकी बुलाहट पर संदेह कर रही थी कि वह मुझ से प्रसन्न है या नहीं। मैं संदेहो से भरी हुई थी, संदेह, संदेह, संदेह। जब मैंने समस्या को देखा मैं वापस विश्वास में आई और संदेह…संदेह…संदेह से भर गई। मेरा आनंद और शांति तुरन्त वापस आ गया।
मैंने इसी बात को अपने जीवन में बार बार सच होते हुए देखा है। जब आनंद और शांति जाते हुए दिखता है तो मैं अपने विश्वास को जाँचती हूँ-अक्सर वह चला गया होता है।