शांति “निर्णायक” है

शांति “निर्णायक” है

मसीह की शांति (प्राण की संगति जो आती है) जिसके लिए तुम एक देह होकर  बुलाए भी गए हो, तुम्हारे हृदय (अपने मन में आने वाले सभी प्रश्नों अन्तिमता  के साथ हल पा लेने से उत्पन्न मन की स्थिति) में राज्य (लगातार  निर्णायक की भूमिका में) करे; और तुम धन्यवादी बने रहो। -कुलुस्सियों 3:15

शांति यीशु से प्राप्त हमारी विरासत है, परन्तु हमें प्रतिदिन उसके अनुकरण करने का चुनाव करना है। कुलुस्सियों 3:15 हमें सिखाता है कि शांति हमारे जीवन में “निर्णायक” होनी चाहिए, हर मुद्दे को हल करते हुए इसे निर्णय की ज़रूरत है। हमारे हृदयों में शांति पाने और बनाए रखने के लिए हमें कुछ चीज़ों को न कहना सीखना होगा।

उदाहरण के लिए, यदि हम किसी बात के विषय में शांति महसूस नहीं करते हैं, तो हमें कभी उसे करना और आगे बढ़ना नहीं चाहिए और यदि कुछ करते हुए हममें शांति नहीं है तो उसे करे तो उसे करने के बाद हमें शांति की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। बहुत से लोग दूसरों से जिनमें विवाह के विषय में शांति नहीं है और तब वे चकित होते हैं कि क्यों उनके विवाह संबंध में शांति नहीं है। बहुत से लोग क़ीमती वस्तुएँ खरीदते हैं जिनके विषय में उनके मन में शांति नहीं है। तब हर महिने अपनी शांति खोते रहते हैं जब उन्हें हर महिने उसके लिए भुगतान करना पड़ता है।

कुलुस्सियों 3:15 कहता है, कि मसीह की शांति “(लगातार निर्णायक) हमारे दिलों में राज करे”। शांति की उपस्थिती निर्णय लेने पूर्णता के साथ सभी प्रश्नों को हल करने में हमारी सहायता करती है जो हमारे मन में उठती है। यदि आप वचन को अपने हृदय और मन में घर बनाने देते हैं यह आपको अन्तर्दृष्टि, ज्ञान, और बुद्धि देता है (पद 16 देखिए)। आपको चकित होना नहीं है। क्या मैं नहीं? मैं नहीं जानता ये सही है कि नहीं? मैं नहीं जानता कि क्या करूँ? यदि आप मसीह के शिष्य हैं उसने आपको शांति का अनुकरण करने के लिए बुलाया है।

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