‘‘शारीरिक दिनों’’ से सचेत रहो

‘‘शारीरिक दिनों’’ से सचेत रहो

उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिए सिधा मार्ग निकालेगा। – नीतिवचन 3:6

मैंने पाया है कि जितना अधिक मैं आज्ञाकारी होती हूँ उतना ही अधिक मुझे अगली बार आज्ञाकारी होने में आसानी होती है। वैसे ही जब मैं आज्ञाकारी होती हूँ, उतना ही मुझे अगली बार आज्ञाकारी होने में आसानी होती है। कुछ दिन हम जैसे ही उठते हैं कह सकते हैं कि दैहिक दिन में जीने में वह पाने जा रही हूँ जिसे मैं ‘‘शारीरिक दिन” कहती हूँ। हम दिन को कठोर और आलस महसूस करते हुए प्रारंभ करते हैं।

हमारे पहले विचार होते हैं यह घर मैं साफ़ नहीं कर रही हूँ, मैं बाज़ार जा रही हूँ, मैं इस मूर्खतापूर्ण नहीं कर रही हूँ, मैं दिन भर वह खाऊँगी जो मैं खाना चाहती हूँ। और मैं नहीं चाहती हूँ कि कोई मेरा इस बात पर सामना करे। यदि वे ऐसा करते हैं तो मैं उन्हें बताने जा रही हूँ कि मैं क्या सोचती हूँ।

यदि हम इस रीति से महसूस करते हैं जब हम जाग उठते हैं तो हमें एक निर्णय बनाना है। हम उन भावनाओं का अनुकरण कर सकते हैं या प्रार्थना कर सकते हैं, ‘‘परमेश्वर कृपया तुरन्त मेरी सहायता करो।” हमारी भावनाएँ यीशु मसीह के आधीन आ सकती हैं यदि हम हमारे स्वभाव को सीधा करने के लिए माँगते हैं।

मैं दैहिक दिनों के बारे में सब कुछ जानती हूँ, मैं जानती हूँ कि हम बुरा व्यवहार करते हुए प्रारंभ कर सकते हैं और यह बदत्तर से बदत्तर बनता है। ऐसा लगता है कि एक बार जब हम स्वार्थी स्वभाव को अपना लेते हैं और अपने देह का अनुकरण करते हैं तो अंत में यह एक व्यर्थ किया हुआ दिन बन जाता है। परन्तु प्रत्येक बार हम अपने विवेक का पालने करते हैं तो हम उस खिड़की को चैड़ा करते हैं कि परमेश्वर हमें अपने आत्मा के द्वारा ले चलने के लिए इस्तेमाल करे। प्रत्येक बार जब हम अपने विवेक की़ अगुवाई का अनुकरण करते हैं तो वह हमें अगली बार अधिक प्रकाश में ले चलेगा। एक बार जब हम यह जानने का आनंद उठा लेते हैं कि परमेश्वर सच में हमें एक अच्छी योजना की ओर ले चलेगा तो उसकी आज्ञा का पालन करना अधिक आसान लगता है।

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