शिकायत करना और बने रहना, स्तुति करना और ऊपर उठना

शिकायत करना और बने रहना, स्तुति करना और ऊपर उठना

यीशु ने उनका उत्तर दिया, ‘‘आपस में मत कुड़कुड़ाओ।’’ – यूहन्ना 6:43

शिकायत करना एक पाप है! यह ऐसी बातचीत का एक भ्रष्ट रूप है जो बहुत से लोगों को उनके जीवन में बड़ी समस्या में डालता है। यह शत्रु के लिए बहुत से द्वार भी खोलता है। शब्द सामर्थ्य के बाहक होते हैं शिकायत करना कुड़कुड़ाहट के शब्द विनाश की ताकत को लाते हैं। वे उसके आनंद को समाप्त करते हैं जो शिकायत करते हैं और दूसरे लोगों को भी प्रभावित करते है जो उसे सुनते हैं।

इफिसियों 4:29 में प्रेरित पौलुस हमें निर्देश देता है कि किसी भी प्रकार की बुरी और दोषी भाषा का इस्तेमाल न करें। एक समय मैं नहीं जानती थी कि इसमें शिकायत करना भी शामिल है। परन्तु अब मैंने सीख लिया है कि यह भी शामिल है। शिकायत करना, कुड़कुड़ाना हमारे जीवन को दुषित करता है और सम्भवतः प्रभु को श्राप देने के समान लगता है। उसके लिए यह एक शाब्दिक प्रदुषण है। दुषित करना ज़हर देना है। क्या आप कभी यह सोचने के लिए ठहरते हैं कि आप और मैं उन बातों के विषय में शिकायत करने द्वारा अपने भविष्य को जहरिला बना रहे हैं जो अभी चल रहा है।

जब हम अपनी वर्तमान स्थिति के विषय में शिकायत करते हैं हम उसमें बने रहते हैं। जब हम कठिनाई के मध्य में परमेश्वर की स्तुति करते हैं वह हमें उसमें ऊपर उठाता है। प्रतिदिन को प्रारंभ करने का उत्तम रास्ता धन्यवाद और कृतज्ञता देकर शुरू करना है। शत्रु पर एक छलांग लगाइए। यदि आप अपने बातचीत और विचारों को अच्छी बातों से नहीं भरते हैं तो वह निश्चित ही उसे बुरी बातों से भरेगा। सच में धन्यवादी लोग शिकायत नहीं करते हैं। वे अच्छी बातों के लिए धन्यवादी होने में बहुत व्यस्त होते हैं जो उनके पास है कि उनके पास उन बातों के विषय में शिकायत करने क लिए कुछ नहीं रहता है जो उनके पास नहीं है। धन्यवाद देना और स्तुति करना अच्छी बात है, शिकायत करना और कुड़कुड़ाना बुरी बात है।

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