और उद्धार का टोप, और आत्मा की तलवार, जो परमेश्वर का वचन है, ले लो। -इफिसियों 6:17
एक मनुष्य था जो बीमार था और चंगाई देनेवाले वचनों को बोलकर और यह विश्वास करके कि यह प्रगट हो अपने शरीर पर वचन का अंगीकार करता था। ऐसा करते समय वह बहुत अधिक संदेह के विचारों से ग्रस्त हो गया। एक कठिन दौर से गुज़रने के पश्चात् और निरूत्साहित होना प्रारंभ होने के पश्चात् परमेश्वर ने उसकी आँखों को आत्मा की दुनिया के प्रति खोला। उसने यह देखाः एक दुष्टात्मा उसे झूठ बोल रहा है, उसे कह रहा है कि वह चंगा नहीं होने जा रहा है और वचन का अंगीकार करने से कुछ लाभ नहीं होगा। परन्तु उसने यह भी देखा कि प्रत्येक बार जब उसने वचन का अंगीकार किया उसके मुँह से तलवार के समान ज्योति निकलती और दुष्टात्मा डर कर पीछे की ओर गिर जाता।
जब परमेश्वर ने यह दर्शन उसे दिखाया तब वह मनुष्य समझा कि वचन को बोलते रहना क्यों इतना महत्वपूर्ण है। उसने देखा कि उसमें विश्वास था इसलिए दुष्टात्मा उसे संदेह से आक्रमण कर रहा था। संदेह कुछ ऐसा नहीं है जो परमेश्वर हममें डालता है। बाइबल कहती है कि परमेश्वर प्रत्येक व्यक्ति को अलग परिमाण विश्वास देता है। (रोमियों 12:3 देखिए)
परमेश्वर ने हमारे हृदयों में विश्वास डाला है परन्तु शैतान प्रयास करता है कि संदेहों से हम पर आक्रमण करने के द्वारा विश्वास को निकाल दे। संदेह ऐसे विचारों के रूप में आते हैं जो परमेश्वर के वचन के विरोध में है। इसलिए हमारे लिए परमेश्वर के वचन को जानना इतना महत्वपूर्ण है। यदि हम वचन को जानते हैं तब हम पहचान सकते हैं कि शैतान कब हमसे झूठ बोल रहा है। तब हम वचन को बोल सकते हैं संदेह के उपर अपना हाथ रख सकते हैं।