सन्देह एक चुनाव है

सन्देह एक चुनाव है

ग्यारह चेले गलील में उस पहाड़ पर गए, जिसे यीशु ने उन्हें बताया था। उन्होंने उसके दर्शन पाकर उसे प्रणाम किया, पर किसी किसी को सन्देह हुआ। यीशु ने उन के पास आकर कहा, ‘‘स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार मुझे दिया गया है। इसलिये तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें सब बातें जो मैंने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ: और देखो, मैं जगत के अन्त तक सदा तुम्हारे संग हूँ। – मत्ती 28:16-20

यह पद हमें इस विषय में कुछ अन्तर्दृष्टि देते हैं, कि यीशु मसीह के क्रूसी करण और पनरूत्थान के तुरन्त बाद क्या हुआ। हम अक्सर इस भाग को महान आज्ञा के रूप में सम्बोधित करते हैं। यीशु मसीह अपने चेलों को गलील के विशेष पर्वत पर दर्शन दिया और उसने उनसे कहा, ‘‘कि परमेश्वर पिता ने उसे स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार दिया है।’’ तब उसने उनसे कहा कि, वे संसार में जायें और सब जातियों के लोगो को चेला बनाए।

मत्ती कहता है कि जब चेलों को पता चला कि वह वास्तव में यीशु को ही देख रहे हैं, तो उन्होंने उसे मुँह के बल गिर कर दण्डवत किया। तब उन्होंने उसकी आराधना की। तब वह इस महत्वपूर्ण कहानी में एक दुखित और नकारात्मक कथन को जोड़ता है, परन्तु कुछ लोगो ने सन्देह किया।

यह कैसे हो सकता है? यहूदा मर चुका था। परन्तु वे महान मसीही जो बाद में तत्कालिन ज्ञात संसार भर में यात्रा किये और हर एक को यीशु के बारे सिखाया था उन्होंने शक किया। वे कैस कर सकते थे? क्या उन्होंने आश्चयकर्मों को नहीं देखा था? क्या उन्होंने लंगड़े को चलते हुए और अन्धों को देखते और दुष्टात्मा ग्रसित लोगों को चंगा होते हुए नहीं देखा था? क्या उन्होंने यीशु को क्रूस पे मरते हुए नहीं देखा था? क्या उन्होंने अब यीशु के हाथों को कील से छीदे हुए नहीं देखा था?

इन सारे प्रश्नों का उत्तर निश्चित ही हां में है। फिर भी मत्ती कहता है कि कुछ लोगो ने शक किया। इन मुट्ठी भर विशेष अभिषिक्त मसीह के शिष्यों ने अविश्वास और सन्देह में संघर्ष किया।

क्या इस बात में कोई आश्चर्य है कि यीशु ने कई अवसरों पर विश्वास के महत्व के बारे में बताया है? इन विश्वासयोग्य मनुष्यों को यीशु ने विश्वास नहीं करने के लिये क्यों डांटा? उसने उनसे क्यों चाहा कि वे अविश्वास न करें? वह इसलिए कि वह मनुष्यों के हृदय को जानता है।

पूर्व में अपने सुसमाचार में मत्ती ने वर्णन किया था कि जब यीशु ने अंजीर के पेड़ को फल रहित देखा तब क्या हुआ था। अंजीर के पेड़ सन्देह एक चुनाव है में फल ठीक पत्तों के आने के पहले लगते हैं। इसलिए उनके लिए यह उचित था कि वह उस पेड़ में फल की अपेक्षा करें। और इसलिए उसने कहा, ‘‘अब से तुझ में फिर कभी फल न लगे; और अंजीर का पेड़ तुरन्त सूख गया।’’ (मत्ती 21:19ब)।

उसके शिष्यों ने अचम्भा किया और फिर पूछा, ‘‘यह अंजीर का पेड़ क्यों तुरन्त सूख गया?’’ (मत्ती 21:20)।

उस अंजीर के पेड़ के बारे में यीशु का उत्तर विश्वास पर ही लागू होता है। ‘‘यीशु ने उनको उत्तर दिया, कि मैं तुम से सच कहता हूँ; यदि तुम विश्वास रखो, ओर सन्देह न करो; तो न केवल यह करोगे, जो इस अंजीर के पेड़ से किया गया है; परन्तु यदि इस पहाड़ से कहोगे, कि उखड़ जा, और समुद्र में जा पड़, तो यह हो जाएगा।’’ (मत्ती 21:21)।

उसका संकेत यह है, जब हम विश्वास करते हैं और सन्देह नहीं करते हैं, तब हम आश्चर्यकर्म कर सकते हैं। अब्राहम ने विश्वास किया और परमेश्वर ने उसके विश्वासयोग्यता का आदर किया। विश्वास परमेश्वर का उपहार है, परन्तु सन्देह विकल्प है। सन्देह हमारे मन में संकलित होनेवाले विचारों का परिणाम है जो सीधे परमेश्वर के वचन का विरोध करता है। इसलिये यह हमारे लिये परमेश्वर के वचन को जानना बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। जब हम परमेश्वर के वचन को जानते हैं, तो हम शैतान के झूठ को परखने के लिये तुरन्त योग्य होते है। सन्देह शैतान के उन घातक हथियारों का भाग है जो हमारे मन पर वह लक्ष्य करता है।

इस पूरी पुस्तक में मैंने इस बात पर जोर दिया है कि हम विचारों का चुनाव कर सकते हैं। हमारे पास यह निर्णय लेने का विकल्प है कि हम अपने विचारों को स्वीकार करें या उसका तिरस्कार करें। इसका अर्थ है कि जब विश्वास हमारे मन पर दस्तक देता है, तब हमारे पास विकल्प है कि हम उसे भीतर आमंत्रित करें या उसे छोड़ दें। विकल्प हमारा है, चुनाव हमारा है। हम विश्वास कर सकते हैं या सन्देह कर सकते हैं, और हम जानते हैं कि विश्वास का मार्ग परमेश्वर की आशीष तक पहुँचाता है।

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‘‘प्रिय प्रभु यीशु, मैंने सन्देह को अपने मन में आने दिया है। बहुत बार मैंने शैतान को मेरे विचारों के द्वारा मुझे यातना देने की अनुमति दी है। मैं इन बातों का अंगीकार करता हूँ और तूझ से क्षमा प्रार्थना करता हूँ। और मैं तूझ से, मुझे विश्वास के साथ भरने और ऐसे विचारों को बाहर निकालने के लिये सहायता माँगती हूँ। मैं आनन्दित हूँ कि मैं केवल तूझ में विश्वास करती हूँ। आमीन।’’

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