
जो तुममें बड़ा हो वह तुम्हारा सेवक बने। जो कोई अपने आप को (अभिमान और व्यर्थ गर्व के साथ) बड़ा बनाएगा वह छोटा (नीचे लाया) किया जाएगा और जो कोई अपने आप को छोटा बनाएगा (जो कोई अपने विषय में विनम्र सोच रखता है और उसी अनुसार व्यवहार करता है) वह बड़ा किया जाएगा। -मत्ती 23:11-12
यीशु अपने शिष्यों के पाँव धो सकता था क्योंकि वह स्वतन्त्र था। एक व्यक्ति जो सचमुच में हो, एक व्यक्ति जो असुरक्षित नहीं हो वह व्यक्ति इन छोटे लक्ष्यों को कर सकता है और परिणामस्वरूप महत्वपूर्ण महसूस नहीं करता है।
हमारे मूल्य और योग्यता का बहुत भाग जो हम करते हैं इससे संबंधित होता है कि यह हमारे लिए सेवा करने का आनंद उठाना बहुत कठिन हो जाता है। दूसरों की सेवा करना एक उच्च पद के रूप में नहीं देखा जाता है फिर भी यीशु ने कहा कि यह सब से श्रेष्ठ बात है। दूसरों की सेवा करना उन्हें प्रेम करने के लिए भी स्वतन्त्र करता है। यह सबसे अधिक घृणा करनेवाले व्यक्ति को भी हथियार डालने को मजबूर करता है। यह वास्तव में उस व्यक्ति के आश्चर्य को देखना अद्भुत होता है जब वह समझता है कि प्रेम के द्वारा उसकी सेवा हो रही है। यदि कोई अच्छे तरीके से जानते हैं कि उसने हमारे प्रति गलत किया है और हम उसकी बुराई के बदले में भलाई करते हैं तो यह उस दीवार को तोड़ना प्रारंभ करता है जो उसने अपने चारों तरफ़ बनाके रखी है। तुरन्त या बाद में वह हम पर भरोसा करना प्रारंभ करेगा और हम से सीखना प्रारंभ करेगा कि सच्चा प्रेम क्या है। एक सेवक होने के पीछे का संपूर्ण उद्देश्य यही है कि दूसरों को परमेश्वर का प्रेम दिखाएँ जो उसने हमें दिखाया है ताकि वे भी उसे बाँट सकें-उसे आगे बढ़ाए।