
इसलिए हम उसके द्वारा स्तुतिरूपी बलिदान, अर्थात उन होठों का फल जो उसके नाम का अंगीकार करते हैं, परमेश्वर को सर्वदा चढ़ाया करें। -इब्रानियों 13:15
हमें केवल तभी स्तुति करनी, और धन्यवाद देना नहीं चाहिए जब कोई ऐसा करने का कोई कारण हो। धन्यवाद देना और स्तुति करना बहुत आसान है यदि ऐसा करने का कोई कारण हो; परन्तु इसे त्याग नहीं कहते। निश्चय ही हमें हर समय स्तुति और धन्यवाद का त्याग देना चाहिए। हमारे जीवन में परमेश्वर की सभी आशीषों और अनुग्रहों के लिए जो उसने हमें दिखाएँ है परमेश्वर को धन्यवाद करने का मन होना चाहिए।
यदि हम उन आशीषों की सूचि बनाने को प्रारंभ करें तो तुरन्त ही हमें इस विषय में पता चल गया कि कितने भले प्रकार से हमने उन्हें पाया है। बहुत सी बातें है जिन्हें हम हल्की रीति से लेते हैं क्योंकि हमारे पास उनकी बहुतायत है जबकि अन्य देश के लोग सोचते हैं कि यदि उनके पास वो होता तो वे धनी होते। शुद्ध ताज़ा पानी इसका एक उदाहरण है। भारत में और संसार के बहुत से हिस्सों में पानी एक बहुत बड़ी बात है जिसे प्राप्त करना आसान नहीं है। बहुत से लोगों को दिनभर की ज़रूरत के लिए पानी प्राप्त करने के लिए मीलों चलना पड़ता है। हम उसमें नहाते हैं, तैरते हैं, बरतन धोते हैं, अपने बाल धोते हैं, उसके साथ खाना पकाते हैं इत्यादि। हम उसे गर्म या ठण्डा भी कर सकते हैं। जितना भी चाहे हम ऐसा कर सकते हैं, जैसी भी हमारी इच्छा है हम कर सकते हैं। ऐसे भी समय होते हैं जब में गर्म पानी से स्नान करती हूँ विशेष करके जब मैं थकी हुई होती हूँ। जब मैं परमेश्वर को गर्म पानी के लिए धन्यवाद देना बंद कर देती हूँ।
बहुत सी बातें हैं जिसके लिए हम धन्यवादी हो सकते हैं यदि हम निर्णय लेते हैं कि हम लगातार धन्यवाद देने जा रहे हैं। शरीर शिकायत की बातें ढूँढ़ता है परन्तु आत्मा परमेश्वर को महिमा देने की बातें ढूँढ़ती है।