तू ने कहा है, “मेरे दर्शन के खोजी हो। (अपने विशुद्ध आवश्यकता के रूप में मेरी उपस्थिती की इच्छा करो)” इसलिए मेरा मन तुझ से कहता है, “हे यहोवा, तेरे दर्शन का मैं खोजी रहूँगा।” -भजन संहिता 27:8
परमेश्वर को खोजना कि वह कौन है केवल इसलिए नहीं कि वह हमारे लिए क्या कर सकता है। परिपक्वता का एक चिन्ह है यदि मेरे पति एक लम्बी यात्रा से घर वापस लौटते हैं तो मैं एयरपोर्ट पर उनसे मिलकर बहुत उत्साहित होऊँगी। क्योंकि मैं उनकी चिंता करती हूँ। उन्हें मुझे ऐसी बातें देने में आनंद होता है जो मेरे प्रति उनके प्रेम को दिखाता है। फिर भी यदि मैं उनसे एयरपोर्ट पर उत्साहित होकर मिलती हूँ-उनके घर वापस लौटने से नहीं परन्तु उन उपहारों को पाकर जो वह मेरे लिए लाए हैं-शायद उन्हें पीड़ा होगी और दुःख पहुँचेगा। मैंने पाया है कि जब मैं परमेश्वर के मुख की खोज (उसकी उपस्थिती) करती हूँ कि अपने अद्भुत प्रेमी स्वर्गीय पिता को जानूँ। उसके हाथ हमेशा मेरे लिए खुले हुए हैं।
हमें केवल एक बात की खोज करने की ज़रूरत है और वह उसकी उपस्थिती में रहना है। क्योंकि केवल वहीं पर हम आनंद की परिपूर्णता अनुभव करते हैं। (भजन संहिता 16:11; 27:4 देखिए)