क्या आप भरोसा रखते हैं या व्याकुल होते हैं?

क्या आप भरोसा रखते हैं या व्याकुल होते हैं?

तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन् संपूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिए सीधा मोर्ग निकालेगा। – नीतिवचन 3:5-6

जब आप समस्या में होते हैं तब आप अपने मन को क्या करने देते हैं? क्या आप परमेश्वर के योग्य हाथों में उन्हें छोड़ देने के बजाए अनुमान लगाने का प्रयास करते हैं?

शरीर का मन होता है जो आपके विचारों और तर्कों के आधार पर गलत सोचता है। जो परमेश्वर के वचन और पवित्र आत्मा की आन्तरिक प्रेरणा के आधार पर सही सोचता है। भ्रम, कुण्ठा और व्याकुलता शरीर के मन का उत्पादन है। आनंद आत्मा का और प्रार्थना में आत्मा की अगुवाई का अनुकरण करने और परमेश्वर के साथ संगति का उत्पाद है।

यदि आप आत्मा के मन से चलते हैं तब आप “परमेश्वर की उस शांति को पाएँगे जो सब समझ से परे है”, “आनंद जो अकथनीय है” और आप के पास “अकथनीय महिमा” होगी और भयावह सताव परीक्षाओं और सताव के मध्य भी आप महिमामय होंगे (फिलिप्प्यिों 4:7; 1 पतरस 1:8 देखिए)। वह शांति “जो सब समझ से परे है” और “आनंद जो अकथनीय है,” शांति और आनंद के प्रकार हैं जो इसका कोई अर्थ नहीं है। दूसरे शब्दों में जब आप के पास इस प्रकार की शांति और आनंद भीतर है तो आप केवल इसलिए आनन्दित हैं क्योंकि आप जानते हैं कि परमेश्वर है। “वह आपको दिशा देने और आपके रास्ते को सीधा और चैरस” एक अद्भुत रूप से, बहुतायत से या हम सब से सोचने या करने से बढ़कर करने के लिए योग्य है। आपको अपने आपको या किसी और को बदलने का प्रयास नहीं करना है और यह आपको प्रसन्न करता है।

आपको कल के विषय में चिंता नहीं करनी है-यह आपको प्रसन्न करता है। आपको बीते हुए कल के विषय में व्याकुल नहीं होना है-और यह आपको प्रसन्न करता है। आपको यह नहीं जानना है कि कैसे सब कुछ करना है-और यह आपको प्रसन्न करता है। आपको जो करना है केवल उसे जानना है जो जानता है। अनुमान लगाने का प्रयास केवल आपको थका देगा परन्तु यदि आप उत्तर के लिए परमेश्वर को भरोसा करते हैं आप उसके विश्राम में प्रवेश कर सकते हैं।

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