महान आज्ञा

महान आज्ञा

तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। बड़ी और मुख्य आज्ञा (सबसे महत्वपूर्ण) तो यही है। और उसी के समान यह दूसरी भी है कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख। -मत्ती 22:37-39

जब यीशु से पूछा गया कि महान आज्ञा और व्यवस्था कौन सी है? तो यीशु ने यह प्रतिक्रिया दी। मत्ती 7:12 में यीशु ने कहा, “इस कारण जो कुछ तुम चाहते हो कि मनुष्य तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो; क्योंकि व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की शिक्षा यही है।” इसलिए परमेश्वर और हमारे जीवन में उसकी योजनाओं को अनुभव करने के लिए हमें दूसरों की ज़रूरतों को देखने और जो हम उनकी सेवा के लिए कर सकते हैं उन्हें करने की ज़रूरत है।

हमारा धर्म शुद्ध नहीं है यदि वह “स्वार्थ” से प्रदुषित हो। हमारा आत्म-केन्द्रित होना हमें लोगों की अवस्थाओं को जानने से दूर रखती है जिनसे वे गुज़रते हैं। हमें अपनी इच्छाओं को पूरी रीति से भूलना नहीं है परन्तु हमेशा स्वयं के विषय में न सोचने के द्वारा स्वार्थता को दूर रखना है। भजन संहिता 37:4 स्पष्ट रीति से कहता है, यहोवा को अपने सुख का मूल जान, और वह तेरे मनोरथों को पूरा करेगा।

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