क्योंकि उसने आप ही कहा है, मैं किसी भी कीमत पर तुझे कभी नहीं छोड़ूँगा, और न कभी तुझे त्यागूँगा (तुझे थामे रहूँगा)। -इब्रानियों 13:5
जब मैं नौ वर्ष की थी तब मैंने नया जन्म पाया। जिस रात्री मैं बचाई गई तो मुझे घर से कलीसिया जाने के लिए छुप कर जाना था, उन रिश्तेदारों के साथ जो हमारे घर में मुलाकात के लिए आते थे। क्योंकि मेरे पिता से वे अनुमति लेते तो वे कभी भी जाने नहीं देते। मैं जानती हूँ कि उस रात्री मैं बचाई जाने के लिए गई और मैं नहीं जानती कि मैंने कैसे जाना कि मुझे उद्धार की ज़रूरत है। उस रात्री पास्टर ने कोई वेदी की पुकार नहीं दी, मैं बहुत ही भयभीत थी। परन्तु आराधना के पश्चात् मैं आगे की ओर गई और मैंने अपने साथ अपने दो कॉज़िन (चचेरा भाई या बहन) को भी लिया। मैंने पास्टर की ओर देखा और कहा, “क्या आप मुझे बचा सकते हैं?” उन्हें खेद हुआ कि वे वेदी को पुकार नहीं लगाई थी।
परन्तु मैंने उस रात्री में अपने हृदय के एक महिमामय शुद्धिकरण को प्राप्त किया था। मैं जानती हूँ कि मैंने नया जन्म पाया था। परन्तु अगले ही दिन मैंने छुपने के खेल में अपने कज़िन के साथ धोखा किया ओर छुप कर देखती रही कि वह कहाँ जा रहा था और मैंने सोचा कि मैंने अपने उद्धार के अनुभव को खो दिया। मैं अपने बीसवें वर्ष में थी इससे पहले कि मैंने जाना कि यीशु ने मुझे नहीं त्यागने की प्रतिज्ञा की है। इब्रानियों 13:5 दृढ़ प्रतिज्ञा करता है, “तुम्हारा स्वभाव लोभरहित हो, और जो तुम्हारे पास है उसी पर सन्तोष करो; क्योंकि उसने आप ही कहा है, “मैं तुझे कभी नहीं छोड़ूँगा, और न कभी तुझे त्यागूँगा।”