सही क्रिया से सही सोच

सही क्रिया से सही सोच

इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारे बुद्धि के नए हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिससे तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो।- रोमियों 12:2

एक मित्र ने एक बार, एक कलीसियाई भवन के बारे में बताया, जिसे उनकी कलीसिया ने खरीदा था। आकार के अनुसार कार्य होता है, उसने कहा। उस मकान का आकार और कमरों की लम्बाई, चैड़ाई का वर्णन करते हुए, उसने यह बात कही। क्योंकि इन सब बातों से उन्होंने पहले से ही निर्णय कर लिया था, कि उस मकान का अच्छे से अच्छा इस्तेमाल किस प्रकार कर सकते हैं।

जब मैंने इस पर विचार किया तो मैंने पाया कि ठीक इसी तरह हमारा जीवन भी कार्य करता है। एक बार यदि हम आकार का निर्णय ले लेते हैं, फिर कार्य अपने आप हो जाता है। इसे इस प्रकार से भी कहा जा सकता है, एक बार यदि हम किसी बात पर अपना मन लगा लेते है-यही इसका रूप है-तो उसका उपयोग या कार्य अपने आप होने लगता है।

बहुत से लोग अपने कार्य को बदलना चाहते हैं, परन्तु अपने विचार को नहीं। वे क्रोध, गपबाजी, कानाफुसी, वासना, बैमानी या झूठ बोलने से मुक्त होना चाहते हैं। वे अपने बुरे व्यवहार को समाप्त करना चाहते हैं, परन्तु अपनी बुरी सोच को बदलना नहीं चाहते।

परमेश्वर के वचन का सिद्धान्त बहुत साधारण है। प्रति कार्य सही सोच से आता है। जब तक हम इस सिद्धान्त को नहीं समझते और इसे अभ्यास में नहीं लाते हैं, हम जयवन्त चाल नहीं चल सकते हैं। तब तक अपने व्यवहार को नहीं बदलते, जब तक हम अपने सोच को नहीं बदलते।

बहुत से लोग सही चीज करने में संघर्ष करते हैं। एक महिला ने मुझ से कहा, कि वह बहुत ही कानाफुसी करनेवाली थी। यह नहीं कि उसके शब्द हमेशा बुरे होते थे। बल्कि वह केवल बात करते रहना चाहती थी। यह मानो ऐसा था कि, वह चाहती थी कि वह हर बात को पहले जाने और जितना जल्दी हो सके वह दूसरों तक पहुँचाए। वह अपने आप को रोकने का, या कम बोलने का कम प्रयास करती, परन्तु ऐसा हो नहीं पाता था।

उसके लिये मेरी सलाह यह थी, ‘‘जब तक तुम अपने सोचने के तरीके को नहीं बदलती, तुम मुक्त नहीं होगी।’’ तब मैंने उस से कहा, कि उसके लिये प्रार्थना करना मुझे अच्छा लगेगा। परन्तु मैंने यह भी जोड़ा, तुम जवाबदार होगे।

‘‘मैं हूँ-और मैं होंऊँगी’’-उसने बीच में कहा।

‘‘नहीं, तुमने मुझे नहीं सुना। तुम सभी प्रकार की कानाफुसी से मुक्ति चाहती हो, परन्तु तुम अपने विचारों में परिवर्तन नहीं लाना चाहती। इस प्रकार नहीं चलेगा। तुम्हें अपने मन में छुटकारा चाहिये, और तब तुम्हारे मन में और कार्य में परिवर्तन आएगा।’’

उसने मेरे शब्दों को प्रतिकार किया। परन्तु उसने मुझ से अपने लिये प्रार्थना करने को कहा, जिसे मैंने किया। जब मैं प्रार्थना समाप्त की, तब वह रोने लगी। जब आपने प्रार्थना किया तब मैं समझ गई, परमेश्वर ने मुझे दिखाया कि मैं कितना अमहत्वपूर्ण और तुच्छ महसूस करती हूँ। जब मैं पहली बार किसी को कोई सूचना देती हूँ, तो यह मुझे अच्छा लगता है-कम से कम कुछ क्षणों के लिये-और महत्वपूर्ण।

वह हम से अपने व्यवहार को बदलने के लिये प्रार्थना करने को कह रही थी। परन्तु अभी भी जो कुछ वह करती थी, उसमें अच्छा महसूस करना चाहती थीं। उसे अपने सोच को बदल कर, उसे यह स्वीकार करना सीखने की आवश्यकता थी, कि वह योग्य थी, और परमेश्वर के द्वारा वह जैसी भी है प्रेम की जाती है। एक बार जब उसने अपने सोच को बदलना सीख लिया और उसने एक सप्ताह का पाठ्यक्रम भी पूरा कर लिया। तो फिर कभी उसे अपनी जीभ के साथ समस्या नहीं रही।

बिना स्वभाव में परिवर्तन लाए, बुरे स्वभाव को अच्छे स्वभाव में लाना असंभव है। अर्थात पहिले हमें हमारे सोचने के तरीको को बदलना है।

प्रेरित पौलुस ने इफिसियों पत्री के चौथे अध्याय में जो बात सिखाई, वह मैं बहुत पसन्द करती हूँ। उसने पुराने मनुष्यत्व और नए मनुष्यत्व का तुलना किया। उसने अपने पाठकों से कहा,“कि तुम अगले चालचलन के पुराने मनुष्यत्व को जो भरमानेवाली अभिलाषाओं के अनुसार भ्रष्ट होता जाता है, उतार डालो, और अपने मन के आत्मिक स्वभाव में नये बनते जाओ। और नये मनुष्यत्व को पहन लो, जो परमेश्वर के अनुसार सत्य की धार्मिकता, और पवित्रता में सृजा गया है।’’ (इफिसियों 4:22-24)।

एक और अनुवाद इसे इस प्रकार से कहता है, पवित्र आत्मा को तुम्हारे सोचने के तरीके को बदलने दो, और तुम्हें एक नया व्यक्ति बनाने दो। तुम परमेश्वर के समान होने के लिये बनाये गये थे, और इसलिये तुम्हें उसे प्रसन्न करना और सच में पवित्र होना चाहिये। (4:23-24)।

पवित्र आत्मा को तुम्हारे सोचने के तरीके को बदलने दो। यह एक मात्र तरीका है, जो आप अपने जीवन में स्थायी परिवर्तन ला सकते हैं।

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पवित्र आत्मा मेरे सोच को बदलने में सहायता करने की आपकी योग्यता के लिये धन्यवाद करती हूँ। अपने पुराने सोचने के तरीकों को उतार फेंकने के लिये मेरी सहायता कर। ताकि तू आज मुझ में काम कर सके, कि मैं और अधिक यीशु के समान बन सकूँ। उसके ही नाम में मैं प्रार्थना करती हूँ। आमीन।।

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