
तुम अपने परमेश्वर यहोवा के पीछे चलना, और उसका भय मानना {आदर के साथ} से, …और उसका वचन मानना (व्यवस्थाविवरण 13:4)
एक बार जब हम परमेश्वर से सुनना शुरू करते हैं, तो वो जो कुछ भी हमसे कहता हैं उसका पालन करना महत्वपूर्ण है। आज्ञाकारिता उसके साथ हमारी संगति की गुणवत्ता को बढ़ाती है और हमारे विश्वास को मजबूत करती है। जब यह सुनने और उसकी आज्ञा मानने की बात आती है तो हम कह सकते हैं कि “अभ्यास सिद्ध बनाता है”। दूसरे शब्दों में, हम अनुभव प्राप्त करने के साथ-साथ अधिक आश्वस्त होते जाते हैं। परमेश्वर की अगुवाई में पूर्ण समर्पण तक पहुंचने के लिए बहुत अभ्यास करना पड़ता है। यह जानते हुए भी कि परमेश्वर के मार्ग सही हैं और उसकी योजनाएँ हमेशा सफल होती हैं, हम अब भी कभी-कभी नकली अनभिज्ञता दिखाते हैं जब वह हमसे कुछ ऐसा करने के लिए कहता है जिसके लिए व्यक्तिगत बलिदान की आवश्यकता होती है, या हमें यह भी डर हो सकता है कि हम स्पष्ट रूप से नहीं सुन रहे हैं और इसलिए कार्रवाई करने के लिए बहुत सतर्क रहते हैं।
बलिदान करने या गलती करने का डर नहीं होना चाहिए। जीवन में कई चीजें ऐसी होती हैं जो गलत होने से भी बदतर होती हैं। यीशु ने कहा, “मेरे पीछे आओ”। मेरा दृढ़ विश्वास है कि जब हमने परमेश्वर को सुनने की पूरी कोशिश की है, तो हमें “बाहर निकलना और पता लगाना चाहिए” कि हम वास्तव में उसकी आवाज सुन रहे हैं या नहीं। अपने जीवनभर भय में पीछे सिकुड़ के रहना हमें कभी भी परमेश्वर से सुनने की हमारी क्षमता में प्रगति करने की अनुमति नहीं देगा।
उसने यह नहीं कहा, “तुम आगे बढ़ो और मैं तुम्हारा पीछा करूंगा।” मैंने सीखा है कि परमेश्वर जो भी कहते हैं, हमें जल्दी से करना चाहिए, क्योंकि अगर हम नहीं करते हैं, तो मैं गारंटी दे सकती हूं कि हम दुखी होंगे।
जब हमारे बच्चे चलना सीख रहे होते हैं, तो नीचे गिरने पर हम उनसे नाराज नहीं होते। हमें एहसास होता है कि वे सीख रहे हैं और हम उनकी मदद करते हैं। परमेश्वर भी ऐसे ही है और वह आपको सिखाएगा कि यदि यदि आप विश्वास में चलते हैं और डरते नहीं हैं तो कैसे उसकी सुनना है।
_______________
आपके लिए आज का परमेश्वर का वचन:
सुनें, अंतर पहचाने, और साहसपूर्वक पालन करें।