अपनी आँखों की पुतली के समान सुरक्षित रख; अपने पंखों के तले मुझे छिपा रख। -भजन संहिता 17:8
किसी के प्रिय होने का तात्पर्य क्या है? इसका तात्पर्य विशेष रूप से प्रिय होना या पहले स्थान पे होना या अधिक निकट होना है। इसका तात्पर्य विशेष ध्यान का आनंद उठाना, व्यक्तिगत निकटता का आनंद उठाना, और प्रथम स्थान पर रहने के अनुभव का आनंद उठाना है; चाहे हम उसके हकदार भी न हों। मुझ में या आप में या किसी और में ऐसी कोई बात नहीं है कि हम परमेश्वर के प्रिय बनें। वह हमें उस आदर के स्थान और उच्चता स्थान के लिए अपने सर्वोच्च अनुग्रह के कार्य के द्वारा चुनता है। हम जो कर सकते हैं वह उसके अनुग्रहपूर्ण उपहार को धन्यवाद और नम्रता के साथ प्राप्त करना है।
अब जब मैं परमेश्वर के प्रिय होने के बारे में बात कर रही हूँ, मुझे कुछ बात स्पष्ट करना चाहिए। क्योंकि परमेश्वर अपनी सभी सृष्टि का परमेश्वर है और चूँकि अपने प्रत्येक संतान से वह व्यक्तिगत संबंध रखता है। वह हम में से प्रत्येक के साथ एक ही समय पर कह सकता है और गंभीरता पूर्वक उसका अर्थ भी है। “तुम मेरी आँखों की पुतली हो, तुम मेरी प्रिय संतान हो।” इस सत्य को समझने के लिए मुझे एक क्षण का समय लगा। वास्तव में पहली बार इस पर विश्वास करने के लिए मैं भयभीत थी। मेरे लिए यह कल्पना करना कठिन था कि मैं परमेश्वर का प्रिय बनूँ, यद्यपि यही बात वह मुझ से कह रहा था। वह मैं थी।
परन्तु तब मैंने यह समझना प्रारंभ किया कि यही तो वह अपने प्रत्येक संतान से कहता है। वह हर किसी से यह कहना चाहता है जो इस पर विश्वास करते, स्वीकार करते, और इसमें चलते हैं। परमेश्वर हममें से प्रत्येक को निश्चयता दिलाता है कि हम उसकी प्रिय संतान हैं, क्योंकि वह चाहता है कि हम मसीह यीशु में जो कुछ हैं उसमें सुरक्षित रहें, ताकि हममें इतना आत्मविश्वास और निर्भरता हो जो हमें इस जीवन में दूसरों को उसके अद्भुत अनुग्रह में हमारे साथ बाँटने के द्वारा विजयी जीवन जीने के लिए आवश्यक है।