वह आकर संसार को पाप और धार्मिकता और न्याय के विषय में निरूत्तर करेगा। -यूहन्ना 16:8
यीशु ने शिष्यों से कहा कि जब पवित्र आत्मा आएगी तब वह उनके मध्य एक आत्मीय, व्यक्तिगत सेवा करेगा। एक कार्य जिसके लिए पवित्र आत्मा उत्तरदायी है वह सब विश्वासियों को सत्य की ओर ले जाना है और विश्वासियों के जीवन के पवित्रकरण की प्रक्रिया में वह कारक है। यह विशेषकर उसकी कायल करने वाली सामर्थ्य के द्वारा पूरी की जाती है। दूसरे शब्दों में प्रत्येक बार जब हम पथभ्रष्ट होते या एक गलत दिशा में जाते हैं पवित्र आत्मा हमें कायल करती है कि हमारा व्यवहार या निणर्य गलत है।
यह अपने आत्मा में ‘‘जानने’’ के द्वारा किया जाता है कि जो हम कर रहे हैं वह सही नहीं है। जब मैं और आप कायल किए गए महसूस करते हैं, तब हमें पश्चाताप करना और अपनी दिशा बदल देनी चाहिए। यदि हम जानते हैं कि किस प्रकार और पवित्र आत्मा के साथ सहयोग करने के इच्छुक हैं, तब हम आत्मिक परिपक्कता की ओर बढ़ सकते हैं और अपने जीवन में परमेश्वर की सभी निर्धारित आशिषें पा सकते हैं। यदि फिर भी हम सिद्ध सत्य को अनदेखा करते हैं और अपने मार्ग पर चलते हैं, तो मार्ग को बहुत ही कठोर और कठिन पाएँगे।
शैतान नहीं चाहता है कि हम कायल हों न ही वह चाहता है कि हम इसे समझें। वह हमेशा हर उस भली बात का जो परमेश्वर हमें देता है नकल करता है-कुछ उस प्रकार का जैसा परमेश्वर ने दिया है परन्तु जो यदि प्राप्त किया जाए तो आशीष के बजाए विनाश लाता है। मैं विश्वास करती हूँ कि सच्चे ईश्वरीय कायलता के नकल दोषारोपण है। दोषारोपण हमेशा अपराधबोध की भावना लाती है। यह हमें ‘‘नीचा’’ महसूस कराती है। हम कुछ भारी चीज़ के ‘‘अधीन’’ महसूस करते हैं जहाँ पर शैतान हमें चाहता है।
दूसरे भाग में परमेश्वर ने यीशु को हमें मुक्त करने, हमें धार्मिकता, शांति और आनंद देने हेतु भेजा (रोमियों 14:17 देखिए)। हमारी आत्माएँ हल्की और चिंता मुक्त होनी चाहिए न कि पीड़ित और बोझ से लदे हुए चाहिए और हम सहने में असमर्थ्य हों। हम अपने पाप को धो नहीं सकते हैं, यीशु उन्हें उठाने आया, वह अकेले ऐसा करने में सक्षम है और हमें उसकी सेवा अवश्य स्वीकार करनी चाहिए।