परन्तु तू ही ने मुझे गर्भ से निकाला; जब मैं, दूध-पीता बच्चा था, तब ही से तू ने मुझे भरोसा रखना सिखाया। मैं जन्मते ही तुझी पर छोड़ दिया गया, माता की गर्भ ही से तू मेरा ईश्वर है। मुझ से दूर न हो क्योंकि संकट निकट है, और कोई सहायक नहीं। -भजन संहिता 22:9-11
मैं एक लम्बे समय से परमेश्वर के साथ चलती रही हूँ, इसलिए मेरे पास कुछ अनुभव हैं, और मैं कुछ कठिन समय से भी होकर गुज़ारी हूँ। परन्तु मैं कभी भी उन बहुत वर्षों को नहीं भूली जब शैतान मुझ पर नियन्त्रण करता था और मेरा शोषण करता था। मैं उन रात्रियों को स्मरण करती हूँ जब मैं रोते हुए ज़मीन पर घूमती थी और अपने आपको असहाय महसूस करती थी।
मैं अपने मित्रों और अन्य लोगों की ओर दौड़ती थी यह सोचकर कि शायद वे मेरी सहायता कर सके। क्रमशः मैं इतनी परिपक्व हो गई थी, मैंने दूसरों की तरफ़ दौड़ना बंद कर दिया। इसलिए नहीं कि मैं उन्हें पसंद नहीं करती या उन पर भरोसा नहीं करती थी, परन्तु इसलिए कि वे वास्तव में मेरी सहायता नहीं कर सकते हैं; केवल परमेश्वर कर सकता है।
मैंने एक वक्ता को कहते हुए सुना, “यदि लोग तुम्हारी सहायता कर सकते हैं, तो सचमुच में तुम्हारे पास कोई समस्या नहीं है।”
मैं अपने पति के प्रति बहुत चिढ़न महसूस करती थी क्योंकि जब वे समस्याग्रस्त होते या कठिन दौर से गुज़रते थे तो वे मुझ से कुछ भी नहीं कहते थे। तब दो या तीन हफ़्ते बाद जब वे विजय पा लेते थे तब वे कहते, “कुछ सप्ताह पहले मैं एक कठिन दौर से गुज़र रहा था।”
उनके समाप्त करने से पहले मैं पूछती, “आपने मुझे क्यों नहीं बताया?” क्या आप जानते हैं कि वे क्या कहते? “मैं जानता हूँ कि तुम मेरी सहायता नहीं कर सकते हो, इसलिए मैंने कहा भी नहीं!”
मैं यह नहीं कहती कि किसी व्यक्ति से अपनी बातें बताना है जिसे हम प्यार करते और भरोसा करते हैं कि आपके जीवन में क्या हो रहा है। परन्तु डेव इस सच्चाई को समझते थे जिसे मुझे अपने जीवन में अभ्यास में लाने की ज़रूरत थी। ऐसे समय आते हैं जब केवल परमेश्वर सहायता कर सकता है, यद्यपि वे चाहते थे कि मैं अपने पति की सहायता कर सकती हूँ; परन्तु वास्तव में नहीं कर सकती थी। केवल परमेश्वर कर सकता था और उन्हें उसके पास जाने की ज़रूरत थी।