वरन अपने शत्रुओं से प्रेम रखो, और भलाई करोः और फिर पाने की आस न रखकर उधार दो; और तुम्हारे लिये बड़ा फल होगा; और तुम परमप्रधान की सन्तान ठहरोगे, क्योंकि वह उन पर जो धन्यवाद नहीं करते और बुरों पर भी कृपालु है। – लूका 6:35
कुछ साल पहले किसी ने मुझे एक व्यक्ति के बारे में बताया जो हमारी सेवकाई के साथ व्यापार कर रहा था। मेरा मित्र भी उसी रैस्टोरैंट में था, अगली मेज पर बैठा हुआ, और उनकी बातचीत को सुन रहा था, जो मेरे बारे में ही थी – और वह अच्छी बातें नहीं बोल रहे थे।
पहले तो मैं क्रोधित हो गई और उसे बताना चाहती थी कि उसे हमसे कभी भी कोई काम नहीं मिलेगा। पर उस रात, पवित्र आत्मा ने मुझसे कहा, “तू उन बातों में से किसी को भी नहीं करेगी।” उसने कहा, “नहीं, तुम वो करोगी जो तुम सिखाती हो। तुम उसके लिए एक उपहार खरीदोगी और तुम उसे बताने जा रही हो कि तुम उन सभी सेवाओं के लिए जो इन सालों में उसने दी कितना ज्यादा उसकी प्रशंसा करती हो।”
यह आसान नहीं था, पर परमेश्वर ने मुझे उसके मार्गदर्शन का आज्ञा पालन करने और इस मनुष्य के लिए एक आशीष होने के लिए अनुग्रह दिया।
स्थिति के बारे में सबसे बड़ी बात मैंने याद रखी वो यह थी कि जैसे ही मैंने उसके लिए कुछ अच्छा करने के लिए कार्य करना आरम्भ किया, मुझे यह करने में आनन्द हो रहा था।
जब हम उन लोगों को दया के साथ देखते जिन्होंने हमें दुख पहुँचाया होता है, यहां पर हमारे अन्दर एक पार्टी होती है क्योंकि परमेश्वर हमारे प्राण में आनन्द को भरता है।
इस तरह आप आज किसे क्षमा कर सकते और किस के लिए अच्छा कर सकते है? क्षमा का अम्यास करें और उस मार्ग पर चलें जो असली वास्तविक शांति और आनन्द को लाता है!
आरंभक प्रार्थना
परमेश्वर, आज आपके वचन का आज्ञा पालन करने और जो मुझे दुख पहुँचाते उनके साथ भला करने के लिए आपके अनुग्रह की आवश्यकता है। मैं जानती हूँ कि जब मैं उन्हें क्षमा करती और आशीष देती हूँ, आप मेरे प्राण में शांति और आनन्द के साथ मुझे आराम देंगे।