विश्वास बनाम भावनाएँ

विश्वास बनाम भावनाएँ

तुम कब तक दो विचारों में लटके रहोगे?-1 राजाओं 18:21

परमेश्वर ने आशीष और नए अवसर हमारे लिए रख छोड़े हैं। उन्हें प्राप्त करने के लिए हमें अवश्य ही विश्वास से कदम उठाने होंगे। इसका अक्सर यह तात्पर्य है कि कुछ काम करने के द्वारा हम कुछ किया हुआ महसूस नहीं करते हैं या अपने मन में ये भी नहीं सोचते है कि यह काम करेंगे। परन्तु हमारा भरोसा और परमेश्वर के लिए आदर उससे बड़ा होना चाहिए जो हम व्यक्तिगत रूप से चाहते, सोचते या महसूस करते हैं। इसका एक सिद्ध उदाहरण हम लूका 5 में देखते हैं कि पतरस और यीशु के कुछ अन्य शिष्य सारी रात मछली पकड़ रहे थे उन्होंने कुछ भी न पकड़ा था। वे प्रयास करते करते थक गए थे और उन्हें नीन्द की ज़रूरत थी। मुझे निश्चय है कि वे भूखे थे, उन्होंने अभी अभी अपने जाल को धोकर सूखा दिया था जो एक बहुत बड़ा कार्य था।

यीशु झील के किनारे प्रगट हुआ और उनसे कहा कि यदि वे बहुत सारी मछलियों को पकड़ना चाहते हैं तो उन्हें फिर से जाल डालना है, केवल इस बार गहराई में डालना है। पतरस ने प्रभु से कहा कि वे थके हुए हैं। उन्होंने रात भर कुछ नहीं पकडा़ हैं, परन्तु उसने कहा, “तुम्हारे कहने से हम (फिर) से जाल डालेंगे।” (लूका 5:5) इसी प्रकार का स्वभाव परमेश्वर चाहता है कि हमारा हो। संभव है हम फिर से हम कुछ करना महसूस न करें। हम न सोचें कि यह एक बहुत बड़ा विचार है या यह करने से भयभीत हों कि यह कार्य नहीं करेगा। परन्तु हमें भावनाओं या भय को स्थान देने से अधिक परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने के लिए इच्छुक होना चाहिए।

शैतान भय को उसके विभिन्न रूपों में इस्तेमाल करने का प्रयास करता है कि हमें उथले पानी में बनाए रखें। परन्तु यद्यपि हम भय महसूस करें हमें अपने ध्यान को परमेश्वर पर और उसके वचनों पर लगाने की ज़रूरत है कि हम उन आशीषों को प्राप्त करने के लिए गहराई में जाल डालें जो परमेश्वर ने हमारे लिए रख छोड़ा है।

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