सीधे हृदय से

सीधे हृदय से

इसलिये तुम चिन्ता करके यह न कहना कि हम क्या खाएँगे, या क्या पीएँगे, या क्या पहिनेंगे।- मत्ती 6:31

आप क्या करने जा रहे हैं? एक मसीही अगुवा होने के नाते मैं यह विश्वास करती हूँ कि यह शैतान का सब से पसन्दिता प्रश्न है। कभी कभी मैं सोचती हूँ कि वह विशेष दुष्टात्माओं को भेजता है जिन के विशेष काम होते है, कि वे इस प्रश्न को विश्वासियों के कान में फुसफुसाएँ। आप क्या करने जा रहे हैं? यह आप ध्यान देंगे, जितना अधिक वे बढ़ते जाएँगे उतना अधिक वे नकारात्मक सोचते जाते हैं। और बहुत जल्दी ही आप हर एक संभव बाधाओं के ऊपर सोचने लगते हैं, जो आपके रास्ते में आ सकती हैं। आप सोचने लगते है कि आप के जीवन में कुछ सही नहीं है।

यह शैतान का कार्य है। वह और उसके सहायक आपके मन में युद्ध छेड़ते हैं। वे आपको और अन्य मसीहियों को लंबे, नैराश्य और गंभीर लड़ाई में डालना चाहता था। जितना अधिक प्रश्न और अनिश्चितता उमड़ता है, उतना ही अधिक आपके मन पर उनके विजय की संभावना फलवती होती है।

यीशु हमें निर्देश देता है, ‘‘इसलिये मैं तुम से कहता हूँ कि अपने प्राण के लिए यह चिन्ता न करना कि हम क्या खाएँगे और क्या पीएँगे; और न अपने शरीर के लिये कि क्या पहिनेंगे। क्या प्राण भोजन से, और शरीर वस्त्र से बढ़कर नहीं?’’ (मत्ती 6:25)।

पहली बात जो अपने आपको स्मरण दिलाना है वह यह है कि, आप अनाज्ञाकारिता में जीते हैं जब आप चिन्ताओं को अपने मन में घर करने देते हैं। यीशु ने कहा, ‘‘ऐसा मत करो।’’

दूसरी बात जो अपने आपको स्मरण दिलाना है वह है, कि जब आप चिन्ता करते हैं तब आप गलत बातों की ओर देखते हैं। स्कूल में ऐसे बातों के चित्र दिखाए जाते हैं जो दृश्य रूप से धामक होते हैं। यदि हम एक तरफ से देखेंगे तो महिला का चेहरा दिखाई देता है और दूसरी तरफ से वह एक गुलाब के रूप में दिखाई देता है।

इसे एक मन स्थिति के रूप में सोचें। यदि आप यीशु और उसके फैली बाहों पर ध्यान देंगे जो आपकी ओर फैला हुआ है तो आप शान्ति में जीएँगे। आप जानते हैं कि वह आपके साथ है, और यदि वह आपके साथ है तो वह आपके आवश्यताओं को भी पूरा करेगा। यदि आप अन्य चित्र पर ध्यान देंगे, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप अपना ध्यान किस पर लगाते हैं? शत्रु जानता है कि यदि वह आपके मन को अक्सर, बहुत लंबे समय तक गलत बातों से भर के रख सकता है, तो वह आपको केवल गलत बाते सोचने और महसूस करने देंगा। उदाहरण के लिये-परमेश्वर अन्धेरे और परेशानी की स्थितियों में आपके साथ रहा, इस बात के प्रति धन्यवादी होने के बजाय, आप यह प्रश्न पूछना शुरू कर सकते हैं। ‘‘मैं यहां कैसे पहुंचा? मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ? यदि परमेश्वर सच में मुझ से प्रेम करता ………..।’’

और यह अन्त नहीं होता है। एक बार जब शैतान आपके मन पर विजय पाना शुरू कर देता है, तो वह आगे बढ़ता है, और बहुत जल्द ही आप शैतान के वचनों को दोहराना प्रारंभ करते हैं। ऐसे वचन न केवल आप को नीचे गिराएँगे, बल्कि आपको चोट पहुँचाएँगे और दूसरों को भी नाश कर देंगे, और तब शैतान दोहरा विजय प्राप्त करता है। उसने आपको धेर लिया और आप ने दूसरों को भी प्रभावित कर दिया।

यीशु ने अपने समय के लोगों से कहा, ‘‘हे सांप के बच्चो, तुम बुरे होकर कैसे अच्छी बातें कह सकते हो? क्योंकि जो मन में भरा है, वही मँह पर आता है। भला मनुष्य मन के भले भण्डार से भली बातें निकालता है, और बुरा मनुष्य बुरे भण्डार से बुरी बातें निकालता है।’’ (मत्ती 12:34-35)।

यह सामर्थी और शक्तिाशाली वचन है। वे आपको स्मरण दिलाते हैं कि शैतान एक फुसफुसाहट के साथ प्रारंभ करता है। सन्देह के छोटे से शब्द आपके कानों में डालता है। यदि आप ध्यान देते हैं तो यह शब्द और मुखरित होते जाता है, और जितना अधिक आप सुनते जाते हैं उतना अधिक प्रभावित होते जाता है। बहुत जल्द ही आप अनजाने में ही उसे सुनकर गलत दिशा में जाने लगते हैं।

यह आपके हृदय से बात करना प्रारंभ करता है, चाहे वे कुछ भी हों। एक बार जब आप कहते हैं, तो आप कार्य करने की ओर बढ़ते हैं। आप न केवल परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते को बर्बाद करते हैं, परन्तु आप दूसरों पर सन्देह और भय लाने का उपकरण भी बनते हैं।

जीतने के लिये आपके पास केवल एक ही मार्ग है। शैतान का सुनना बन्द करें। जितना अधिक आप ऐसे शब्दों को सुनना बन्द करेंगे, आपको यह कहने की आवश्यकता है, ‘‘शैतान, प्रभु तुझे डांटे। मेरे मन से दूर रहो।’’

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‘‘प्रभु यीशु, आपकी वचनों के लिये मैं आपको धन्यवाद देती हूँ। जो मुझे मेरे विचारों और शब्दों के महत्वों के बारे में स्मरण दिलाता है। कृपया मैं आपके नाम से माँगती हूँ, कि आप मेरे हृदय को ऐसी शान्ति और आनन्द से भर दें, जो शत्रु मेरे मन से कभी भी न ले जाने पाए। मेरे शब्द मेरे जीवन में तेरी उपस्थिति को दर्शानेवाले हों। आमीन।।’’

 

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