वही सब वस्तुओं में प्रथम है; और सभी वस्तुएँ उसी में (एक साथ) स्थिर रहती हैं वही देह अर्थात् (अपनी) कलीसिया का सिर है; वही आदि है और मरे हुओं में से जी उठने वालों में पहिलौठा कि सब बातों में वही प्रधान ठहरे। -कुलुस्सियों 1:17-18
मैं विश्वास करती हूँ कि लोगों में अपनी शांति खोने और उन बातों के पाने में पराजित होना जिन्हें उन्हें चाहिए उनके कारणों में से एक यह है क्योंकि वे अपनी प्राथमिकताओं को शांति से बाहर जाने देते हैं। बहुत सारे परियोजनाएँ हैं जिसमें लोग अपना ध्यान और समय दे सकते हैं। कुछ एक चुनाव जो हमारे पास हैं वे खराब विचार हैं और वे आसानी से पहचाने जाते हैं कि इनको अनदेखा करना चाहिए परन्तु हमारे बहुत से विकल्प अच्छे होते हैं। फिर भी अच्छी बातें हमारी प्राथमिकताओं को बर्बाद कर सकती है। किसी के लिए जो उच्च प्राथमिकता है वह हमारे लिए समस्या हो सकती है। इसीलिए हमें सतर्क होना है कि हमें केवल वह करना है जो हर कोई कर रहा है। हमें वह करने की ज़रूरत है जो व्यक्तिगत रूप से करने के लिए परमेश्वर अगुवाई देता है।
अपनी प्राथमिकताओं को निर्धारित करते वक्त यह समझना महत्वपूर्ण है कि यीशु हर बात की सामर्थ्य रखता है जो हमारे जीवन में भला है। इसलिए वह हमेशा हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। यीशु सब कुछ एक साथ थामता है। एक दम्पत्ति अच्छा विवाहित जीवन नहीं जी सकता है यदि यीशु उसे नहीं थामता है। वास्तव में किसी के साथ अच्छा संबंध नहीं होता यदि यीशु व्यक्तियों को एक दूसरे से प्रेम करने के लिए यदि अगुवाई नहीं देता और प्रभावित नहीं करता। यीशु के बिना धन एक मुसीबत है। यीशु के बिना हमारे विचार धुँधले और भ्रम में रहेंगे। उसके बिना हमारी भावनाएँ अनियन्त्रित होंगी।
यीशु हमारी कलीसिया देह का सिर है इसलिए हर पहलु से केवल उसे ही मुख्य स्थान पाना है, पहले खड़े होना है और हमारे जीवन में प्रथम होना है। इसका तात्पर्य है यदि यीशु हमारे जीवन में प्रथम नहीं है तो हमें अपनी प्राथमिकताओं को पुनः व्यवस्थित करने की ज़रूरत है।