हर समय (प्रत्येक अवसर पर) और हर प्रकार से आत्मा में प्रार्थना, और विनती करते रहो, और इसीलिए जागते रहो कि सब पवित्र लोगों (परमेश्वर के पवित्र किए गए लोग) के लिए लगातार विनती किया करो। -इफिसियों 6:18
इफिसियों 6:10-17 में प्रेरित पौलुस परमेश्वर के हथियारों के विषय में और उसे किस प्रकार इस्तेमाल करना है और वचन रूपी हथियार को आत्मिक युद्ध में कैसे इस्तेमाल करना है यह बताता है। प्रत्येक हथियार की सूचि बनाने के बाद पद 18 में पौलुस अपने संदेश को यह कहते हुए समाप्त करता है, ‘‘हर समय प्रार्थना करो।” हमें कब, कितनी बार प्रार्थना करनी है? हर समय।
इसका क्या तात्पर्य है? इसका अर्थ यह है कि जब हम बाहर किराने की दुकान में हो और परमेश्वर हमारे हृदय में प्रार्थना करने के लिए बात डालता है तो वहीं पर हमें अपना सब कुछ छोड़कर घुटनों पर आ जाना है और उस सुपर मार्केट के मध्य में ही हमें प्रार्थना करनी है। मैं अक्सर अपने बिस्तर के पास आती हूँ और घुटनों पर आकर प्रार्थना करती हूँ। और भी सामान्य समय में जब मैं आत्मा के द्वारा प्रेरित महसूस करती हूँ कि मैं मुँह के बल गिर जाऊँ और अपने मुख को धरती के तरफ़ करूँ और उसके सामने प्रार्थना करूँ। उससे मुझे सतर्क होना है कि प्रार्थना में अपनी शारीरिक मुद्रा से भ्रम में न पड़ूँ। हम शांत रूप से सुपर मार्केट में भी प्रार्थना कर सकते हैं जैसा वहाँ पर चल रहे हैं।
जीवन के भिन्न मौसमों में हमें भिन्न रीति से प्रार्थना करने के योग्य होना है। एक जवान माता तीन और चार बच्चों के साथ उदाहरण के लिए अपने प्रार्थना जीवन को एक भिन्न रीति से बनाने जा रही है इसकी तुलना में कि बूढ़ी माँ जिसका परिवार पूरी रीति से बढ़ चुका है और घर से बाहर है।
यदि हम प्रार्थना के विषय में बहुत अधिक “धार्मिक” बन जाते हैं और सोचते हैं कि हमें इसे किसी और प्रकार से करना है क्योंकि कोई और इस प्रकार से करता है तो हम अपने ऊपर अपराध लाएँगे। प्रार्थना के विषय में महत्वपूर्ण बात शारीरिक मुद्रा, या समय या स्थान नहीं है परन्तु विश्वास में प्रार्थना करना सीखना है-हर समय, निरन्तरता के साथ। जिस किसी भी समय अभिलाषा या ज़रूरत उत्पन्न होती है – प्रार्थना करें।