प्रतिदिन के उत्तर

परमेश्वर का प्रेम असुरक्षा को बाहर निकालता है

परमेश्वर का प्रेम असुरक्षा को बाहर निकालता है

“हम उसे प्रेम करते हैं क्योंकि पहले उसने हमसे हमसे प्रेम किया है” (देखिए 1 यूहन्ना 4:19)। यदि हम परमेश्वर को हमें प्रेम करने नहीं देते, तो हम शायद ही उसे वापस प्रेम करने पाएँगे। यदि हम कुछ हद तक हमारे साथ शांति स्थापित नहीं कर सकते हैं तो बाहर जाकर लोगों से प्यार करने के काबिल नहीं होंगे, जैसा कि बाइबल हमसे करने के लिए कहती है। “…तुम अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखो…” (मरकुस 12:31)।

किसी भी बात से बढ़कर, लोगों को स्वयं के लिए परमेश्वर के प्रेम की प्रकाशन की ज़रूरत है। हमारे लिए परमेश्वर का प्रेम हमारे विश्वास की नीव है। पाप से हमारी स्वतंत्रता और दूसरों की सेवा में असुरक्षा के रूप में भय के बिना कदम रखने की हमारी योग्यता का आधार है।

परमेश्वर ने हम सबको एक अभिलाषा और इच्छा हमारे ह्रदय में एक चाह के साथ बनाया है कि हम प्रेम किए जाएँ। और वचन हमें सिखाता है कि परमेश्वर हमसे उतना प्यार करता है जितना वह यीशु से करता है! (देखिए यूहन्ना 17:23)।

लोग जो सोचते हैं कि परमेश्वर के साथ उनका सही संबन्ध इस बात पर आधारित है कि वे अपनी गलतियों पर विजय पाने के विषय में कितनी उन्नति किए है सोचते हैं कि उन्होंने अपने पराजयों और दुर्दशा से परमेश्वर को दुःखी कर दिया है। हम परमेश्वर को दुःखी नहीं कर सकते हैं। प्रेम थकित नहीं होता है और हम इसके कारण नहीं बन सकते हैं कि परमेश्वर हमसे प्रेम न करें। प्रेम कुछ ऐसा नहीं है जो ऐसा करता है, क्योंकि परमेश्वर प्रेम है। (1 यूहन्ना 4:8)

बहुत से लोग एक शर्मिंदगी स्वभाव विकसित करते हैं इस बात के परिणामस्वरूप कि विभिन्न लोग या माता-पिता, विद्यालय के शिक्षक, मित्र, अजनबियों के द्वारा जो अन्यायपूर्ण और निर्दयी व्यवहार जो उनके प्रती किया जाता है। हमारे स्वभाव और हमारे विषय में हमारे विचार कुछ समय के अंतराल में हमारे भीतर विकसित होता है। यदि हम नहीं जानते हैं कि हम मसीह में प्यारे हैं, हम असुरक्षित बन सकते हैं। अपने मूल्य का निर्धारित इस बात को करने न दीजिए कि अन्य लोग कैसा करते है।

लोग जो आत्मविश्वास की कमी रखती है अपने भीतर नीजि छोटा युद्ध लड़ते रहते हैं, अपने विषय में अधिकतर समय। यदि हम प्राकृतिक संसार पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो यह कठिन नहीं है कि प्रति दिन सुबह उठे और अपने भीतर की बहुत सारी गलत बातों की सूची बनाएँ। शैतान हमारे मस्तिष्क में हमारे मन में झूठ डालता है कि हम अपने विषय में उन बातों पर एक नज़रिया बनाएँ जो अन्य लोग कहते है।

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