
हे मेरे प्राण, तू क्यों गिरा जाता है? और तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है? परमेश्वर पर आशा लगाए रह; क्योंकि मैं उसके दर्शन से उद्धार पाकर फिर उसका धन्यवाद करूँगा। – भजन 42:5
हे परमेश्वर, तू ने हमें क्यों सदा के लिये छोड़ दिया है? तेरी कोपाग्नि का धूआँ तेरी चराई की भेड़ों के विरूद्ध क्यों उठ रहा है? – भजन 74:1
जब मैं उन आन्धियों के बारे में सोचती हूँ, जिनका हम सब सामना करते हैं। तब मैं समझ सकती हूँ कि क्यों लोग ऐसा पूछते हैं। आन्धी क्यों? क्यों हमारे जीवन में इतनी समस्याएँ और संघर्ष आती हैं? क्यों परमेश्वर के लोगों को जीवन में बहुत सारे दुःखों का सामना करना पड़ता है? जब मैंने इन प्रश्नों पर विचार करना शुरू किया, तब मैंने यह देखना शुरू किया कि शैतान इन प्रश्नों को हमारे मन में रोपित करता है। उसकी कोशिश है कि हमारा ध्यान हमारी समस्याओं पर केन्द्रित करता रहे, बजाय कि परमेश्वर की भलाई पर केन्द्रित करें। यदि हम लगातार इन प्रश्नों को पूछते रहते हैं तो यह हो सकता है, कि हम परमेश्वर पर आरोप भी लगा सकते हैं। मैं नहीं सोचती हूँ कि यह परमेश्वर से पूछना गलत है कि ऐसा क्यों हुआ। भजनों का लेखक निश्चित रूप से ऐसा पूछने से हिचकिचिता नहीं है।
यीशु मसीह के उस कहानी को याद करती हूँ, जब वह मरियम और मार्था के घर में गया जब उनके भाई की मृत्यु हो चुकी थी। यीशु मसीह लाजर में मरने के बाद चार दिन तक इन्तजार किया फिर उसके धर गए। जब वह वहां पहुँचा तो मार्था ने उससे कहा, ‘‘स्वामी यदि तू यहां होता तो मेरा भाई नहीं मरता।’’ (यूहन्ना 11:21)। वह आगे कहती रही, ‘‘और अब भी जानती हूँ कि जो कुछ तू परमेश्वर से माँगेगा, परमेश्वर तुझे देगा।’’ (पद 22)।
क्या उसने उन पदों पर विश्वास किया था? मुझे नहीं मालूम, क्योंकि यीशु ने उससे कहा, ‘‘तुम्हारा भाई जी उठेगा।’’ मार्था ने कहा, ‘‘मैं जानती हूँ कि वह अन्तिम दिनों में पुनरूत्थान के अन्तिम दिन जी उठेगा।’’ (पद 23,24)। वह नहीं समझ सकी कि यीशु क्या कहा रहा है?
मैं मार्था की आलोचना नहीं करती, परन्तु उसने उसे खो दिया। जब यीशु आया उसने नहीं पूछा, ‘‘तुम ने कुछ क्यों नहीं किया?’’ बदले में उसने कहा, ‘‘यदि तुम यहां ……. होते तो वह जीवित होता।’’
जब यीशु ने उसे निश्चय दिलाया कि लाजर फिर से जी उठेगा उसे यह नहीं पता था, कि वह अभी होनेवाला है। वह केवल पुनरूत्थान के दिन पर ध्यान केन्द्रित करती रही। आनेवाले दिनों पर ध्यान केन्द्रित करने के द्वारा यीशु मसीह के वर्तमान शब्द को उसने खो दिया।
परन्तु क्या हम में से अधिकतर लोग मार्था के समान नहीं हैं? हम अपने जीवन को आसानी से चलाना चाहते हैं और जब ऐसा नहीं होता है तो पूछते हैं, क्यों? परन्तु वास्तव में हमारा अर्थ होता है, परमेश्वर यदि तू मुझ से सच्चा प्रेम करता और मेरी चिन्ता करता तो यह मेरे साथ नहीं होता।
और अब हम ‘क्यों‘प्रश्न पर ध्यान दें? उदाहरण के लिये – जब कोई दुर्घटना में मरता है, तो परिवार के लोगों का पहला प्रश्न होता है। क्यो? क्यो वह? क्यों अभी? यह दुर्घटना क्यों?
एक क्षण के लिए मान लेते हैं कि परमेश्वर ने कारण बता दिया। क्या इससे कुछ परिवर्तन होगा? शायद नहीं? वह प्रिय व्यक्ति तो चला गया। और उसके जाने का दर्द पहले के ही समान अभी भी गंभीर है। क्या इस स्पष्टीकरण से आपको कुछ सीखने को मिला? हालही के वर्षों में मैंने यह सोचना शुरू किया कि मसीही लोग वास्तव में परमेश्वर से क्यों नहीं पूछते हैं? यह संभव है कि हम परमेश्वर से पूछें क्या तुम मुझसे प्रेम करता है? क्या मेरे दुःख और दर्द में तू मेरी चिन्ता करेगा? मुझे तू दर्द में अकेले नहीं छोड़ेगा? क्या यह सम्भव है कि हम इस बात से डरे हुए हैं कि वास्तव में परमेश्वर हमारी चिन्ता करता है? हम परमेश्वर से स्वष्टीकरण माँगते हैं।
बदले में हमें यह कहना सीखने की आवश्यकता है, ‘‘प्रभु परमेश्वर, मैं विश्वास करती हूँ।’’ संभवतः मैं सभी बुरे घटनाओं का कारण नहीं समझ सकती। परन्तु मैं यह निश्चित रूप से जानती हूँ कि तू मुझ से प्रेम करता है और हमेशा मेरे साथ है।
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‘‘स्वर्गीय पिता, क्यों का प्रश्न करने के बजाय, मेरी सहायता कर कि मेरे प्रति आपके प्रेम पर ध्यान केन्द्रित करूँ। जब शैतान मेरे मन को परेशानी वाले प्रश्नों को भरना चाहता है तो मेरे चारो ओर आपके प्रेम में बाहों की सुरक्षा महसूस करने दे। हमेशा मैं अपनी आराधना और धन्यवाद दिखा सकूँ इन बातों के लिये जो कुछ तू मेरे लिये करता है। यीशु के नाम से मैं प्रार्थना करती हूँ। आमीन।।’’