
“हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूँगा (मैं तुम्हारे प्राण को आराम, मुक्ति, ताजगी) दूँगा। मेरा जुआ अपने ऊपर उठा लो, और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र (दयावान) और मन में दीन हूँ: और तुम अपने मन में विश्राम (आराम, मुक्ति, ताजगी, मनबहलाव और आशीषित शांति) पाओगे। क्योंकि मेरा जुआ सहज (उपयोगी, भला-कठोर कठिन, नुकीला या दबाव वाला नहीं, परन्तु आरामदायक, अनुग्रहपूण, और सुखदायी है) और मेरा बोझ हलका है।” -मत्ती 11:28-30
सरल की परिभाषाओं में से एक “आसान” है। इस बात को मन में रखते हुए ऊपर लिखित पदों में यीशु के शब्दों पर ध्यान दीजिए। ध्यान दीजिए कि कितनी बार “आसान” शब्द प्रगट हुआ।
सब से पहले यीशु ने कहा, “मुझ से सीखो।” मैं विश्वास करती हूँ कि उसका अर्थ था, “सीखो कि मैं किस प्रकार से लोगों और परिस्थितियों से व्यवहार करता हूँ। सीखो कि किसी भी दी गई परिस्थिती के प्रति मेरी प्रतिक्रिया किस प्रकार होती है और मेरे मार्गो को अनुकरण करो।” यीशु मसीह तनावग्रस्त या जला भूना नहीं था। वह परिस्थितियों द्वारा या अन्य लोगों के मार्ग के द्वारा नियन्त्रित नहीं था। यूहन्ना 14:6 में उसने कहा, “मार्ग मैं ही हूँ।” उसका मार्ग सही मार्ग है-वह मार्ग जो हमें धार्मिकता, शांति और आनंद की ओर ले चलता है।
स्मरण रखिए कि यूहन्ना 15:11 में यीशु ने प्रार्थना की कि उसका आनंद हमारी आत्माओं में भर जाए। यह तब तक नहीं होगा जब तक हम जीवन के प्रति और उसकी विभिन्न परिस्थितियों के प्रति एक भिन्न नज़रिया रखाना नहीं सीखते। मैं बहुत सी बातों के विषय में लिखा करती हूँ जिन्हें हमें सरल करने की ज़रूरत है और यह सूचि अन्तहीन होगी। परन्तु यदि हम प्रत्येक बात के प्रति एक सरल नज़रिया रखना सीखते हैं तो यह कुछ बातों में सरल होना सीखने से उत्तम है।
चाहे आप किसी भी बात का सामना करें, यदि आप स्वयं से पूछते हैं कि वह सामान्य नज़रिया क्या होगा। मैं विश्वास करती हूँ कि आप उन रचनात्मक विचारों को पाकर आश्चर्यचकित होंगे जो आपके पास होगी। पवित्र आत्मा आप में रहती है और वह अद्भुत रूप से सामर्थी है और वह अद्भुत रूप से सरल है। पवित्र आत्मा आपको सरल होना सिखाएगा यदि आप सच में सीखने की इच्छा रखते हैं।