मेरे हृदय और मन दोनों तो हार गए हैं, परन्तु परमेश्वर सर्वदा के लिए मेरा भाग और मेरे हृदय की चट्ठान बना है। -भजन संहिता 73:26
मार्ग में से एक जिसमें हम अपने विश्वास का निर्माण करने का प्रयास करते हैं वह अच्छी बातों की ओर देखना है जो हमारे पास है परन्तु समझना है कि उनमें से कितनी चीज़ों के बिना हम जी सकते हैं। इस विषय में सोचना मुझे आनन्दित करता है कि हमारा घर कितना सुन्दर है। परन्तु मैं जानती हूँ कि यदि हमें फिर दो या तीन कमरों के घर में फिर रहना पड़े तब भी मैं उतनी ही आनन्दित रहूँगी क्योंकि मेरा आनंद मेरे भीतर से आता है और उन वस्तुओं से नहीं जो मेरे पास है।
यह समझने में हम संतुलन पाते हैं कि सब कुछ जो हमारे पास है वह परमेश्वर की ओर से उधार में दिया गया है। उसने हमें यह इस्तेमाल करने के लिए दिया है परन्तु हमें न तो उन्हें अपना बनाना है और न ही वह हमें अपना बना पाए। वह क्षण जब हम चीजों को ग्रहण करना शुरू कर लेते हैं वह हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण बन जाते हैं कि परमेश्वर उन्हें हमारे हाथों से गिराना शुरू कर देता है। जब वह हमें झटकता है तो यदि हम उन बातों को जाने देते हैं और कहते हैं, ‘‘ठीक है प्रभु, आप सही हैं, मैं इससे बहुत अधिक जुड़ रहा हूँ या मैं इसे बहुत अधिक पसंद करने लगी हूँ या मैं इसे बहुत अधिक आसरा रखने लगी हूँ।’’ तब अधिकांश समय वह हमें इसे रखने देता है परन्तु यदि हम उसे बहुत मज़बूती से पकड़े रहते हैं और सुरक्षा की भावना में बहुत महत्वपूर्ण बन जाते है और हमारा आनंद उस पर आश्रित हो जाता है तब परमेश्वर उसे हमसे दूर कर देता है। परमेश्वर हमें सब प्रकार की चीज़ें इस्तेमाल करने और आनन्दित करने के लिए देता है परन्तु वह यह नहीं होगा वह हम पर अधिक अधिकार करे।