कदाचित रात को रोना पड़े, परन्तु सवेरे आनंद पहुँचेगा। -भजन संहिता 30:5
मैंने व्यक्तिगत अनुभव के द्वारा बुद्धि का एक श्रेष्ठ टुकड़ा पायाः दर्द से भयभीत न हो! यह जितना आप चंगा होने का दर्द उसे रोकते हैं उसे प्रतिरोध करते हैं उतना ही अधिक आप अपने ऊपर दर्द के प्रभाव को बढ़ाते हैं।
वर्षों पूर्व मेरे जीवन में इस सच्चाई का एक उदाहरण घटित हुआ जब मैंने अपने जीवन में पहली बार उपवास रखा। परमेश्वर ने मुझे एक अठाईस दिन के जूस के उपवास के लिए बुलाया। प्रारंभ में मैंने कुछ कठिन समय व्यतीत किया। मैं बहुत अधिक भूखी थी। वास्तव में मुझे इतनी अधिक भूख लगी कि मैं वास्तविक दर्द का अनुभव करने लगी थी। जब मैंने प्रभु की ओर देखकर पुकारा ये शिकायत करते हुए कि मैं और अधिक खड़ी नहीं रह सकती, उसने मुझे उत्तर दिया। अपने भीतर कहीं गहराई में मैंने उसकी शांत और “धीमी आवाज़” को सुना (1 राजाओं 19:12), जो मुझ से कह रहा था, “दर्द से लड़ना बंद करो। उसे अपना कार्य करने दो।” उस समय से उपवास रखना बहुत आसान था, यहाँ तक कि आनंदपूर्ण भी। क्यिंकि मैंने जाना कि प्रत्येक बार मैं असुविधा महसूस करती हूँ यह उन्नति का एक चिन्ह था।
नियम यह है कि दर्द को जितना अधिक प्रतिरोध करो उतना ही अधिक वह ताकतवर बनता है। जब एक गर्भवती महिला जचकी के लिए जाती है उसकी सहायिका द्वारा उसे सलाह दी जाती है, “विश्राम” करो। वे जानते हैं कि जितना अधिक वह दर्द से लड़ती है उतना ही वह ताकतवर बनेगा और जचकी की प्रक्रिया अधिक लम्बी खींचेगी। जब आप दर्द का अनुभव करते हैं उससे मत लडि़ए। उसे उसका उद्देश्य पूरा करने दीजिए। यह प्रतिज्ञा स्मरण रखिए, “वे जो आँसूओं में बोएँगे, आनंद और जयजयकार गाते हुए काटेंगे।” (भजन संहिता 126:5) जो कुछ आपको सहने की ज़रूरत है उसे सहना सीखिए। ये जानते हुए कि उसकी दूसरी ओर आनंद है!