वह बुद्धि की बात बोलती है, और उसके वचन (परामर्श और निर्देश देना) के कृपा की शिक्षा के अनुसार होते हैं। -नीतिवचन 31:26
मसीह के देह में हमारी विशेष सेवकाई के बाद भी हममें से हर एक व्यक्ति किसी न किसी प्रकार परमेश्वर के मुँह हैं। चाहे मुझे और आपको एक विश्व शिक्षा का वरदान दिया गया हो या चाहे हमें अपने सहकर्मियों के प्रति गवाह होने की योग्यता दी गई हो परमेश्वर चाहता है कि हम अपने मुँह का इस्तेमाल उसके लिए करें।
एक बुद्धिमान व्यक्ति ने एक बार मुझ से कहा, ‘‘जॉयस, परमेश्वर ने आपको बहुत से लोगों का कान दिया है, टुटे हुए रहो और जब बात की जाती है तभी बात करो।’’ निश्चित ही इसके लिए पवित्र आत्मा के द्वारा गहरे प्रशिक्षण की आवश्यकता है। यदि हम चाहते हैं कि हमारे मुँह के शब्द परमेश्वर की सामथ्र्य को ले चले तो अवश्य ही हमारा मुँह उसका होना चाहिए। क्या हमारा मुँह परमेश्वर का मुँह है? क्या आप ने सचमुच में उसके उद्देश्य के लिए इसे उसको दिया है?
अपने व्यवहार के लिए बहाने बनाने के द्वारा उसके परिणामस्वरूप एक व्यक्ति का हृदय कठोर हो सकता है। बहुत लम्बे समय तक मैंने अपने ‘‘मुँह की समस्या’’ के लिए अपने व्यक्तित्व पर दोषारोपण के द्वारा बहाने बनाए। या मेरे भूतकाल में जो दुव्र्यवहार हुआ उस पर दोषारोपण किया या इस सत्य पर कि मुझे बहुत महसूस हुआ मैं बहुत थकित हुई थी। वास्तव में बहानों की एक सूचि जो हम अपने पराजयों के लिए बनाते हैं कि परमेश्वर की इच्छा और उसके वचन का सामना कर सके वह अन्तहीन है। अन्नतः पवित्र आत्मा ने मेरा पूरा ध्यान प्राप्त किया ताकि मैं अपने शब्दों के लिए उत्तरदायी ठहरना प्रारंभ करूँ। मुझे अब भी एक लम्बा रास्ता तय करना है परन्तु मैं महसूस करती हूँ कि मैंने काफ़ी प्रगति की है क्योंकि मैं सच्चे पश्चाताप् की स्थिति तक पहुँच चुकी हूँ।
वे जो परमेश्वर के द्वारा उपयोग में लाए जाने के इच्छुक हैं उन्हें परमेश्वर को अनुमति देने की ज़रूरत है कि वे उनके मुँह के विषय में व्यवहार करे और जो उससे बाहर आता है उससे व्यवहार करे।