तुझे (कृपा की बहुतायत के साथ) आशीष दूँगा …और तू आशीष का मूल (दूसरों के लिए भलाई का कारण) होगा। – उत्पत्ति 12:2
मुझे उन लोगों से अधिक कुण्ठित नहीं करता है जो नहीं जानते हैं कि उद्धार कैसे प्राप्त करना है। जिनके विषय में मैं जानती हूँ कि वे इन्हें पसंद करेंगे उन्हें एक उपहार देने के द्वारा प्रेम या प्रशंसा प्रगट करना मेरे लिए एक आनंद की बात है। परन्तु यदि प्रतिक्रिया, “नहीं, नहीं, नहीं मैं इसे नहीं स्वीकार कर सकती” या “सच में आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था” या नहीं इसे वापस ले लीजिए, प्रतिक्रिया ऐसी होती है तो यह सारा आनंद को ले लेती है। यह बहुत ही अजीब सा लगता है जब किसी को उपहार स्वीकार करने के लिए दबाव डालना पड़ता है। आप चकित होंगे यदि आप ने उन्हें पूर्ण रीति से उपहार दे दिया हो। एक उपहार को अनुग्रहपूर्वक स्वीकार करना आन्तरिक सुरक्षा से उत्पन्न होता है। वे जो उपहार पाने में असुविधाजनक होते हैं प्रायः उनके भीतर एक असुरक्षा की गहरी भावना होती है जो दूसरों की दयालुता को स्वीकार करने से रोकती है। वह बहुत ही निम्न महसूस करते हैं कि वे कल्पना भी नहीं कर सकते कि वे किसी चीज़ के हक्कदार हैं या वे कि उपहार उन्हें एहसान के बोझ के तले दबा देगा। वे किसी संबंध में जूड़ने के बजाए उसे अस्वीकार कर देंगे।
मेरे जीवन में और कार्य में मेरे पास देने के लिए बहुत सारे उपहार हैं और मैं भी कुछ प्राप्त करती हूँ। जब मैं ऐसा करती हूँ सच में लोगों की प्रशंसा करती हूँ और लोगो से ऐसा कहती हूँ। एक देने वाले बनिए और अपेक्षा रखिए कि परमेश्वर दूसरों के द्वारा आपको आशीष दे। जब वे ऐसा करते हैं उन्हें धन्यवाद दीजिए और अनुग्रहपूर्वक उस उपहार को स्वीकार कीजिए। सब से मूल्यवान उपहार जो दिया जा सकता है वह हममें से हर एक को प्रतिदिन दिया जाता है। फिर भी हममें से कुछ लोगो में उसे स्वीकार करने का विश्वास होता है। परमेश्वर हमें अपने प्रेम का प्रस्ताव देता है। हमें केवल इतना करना है कि हमें अपने हृदय को खोलना और उसके निर्णयों को स्वीकार करने का निर्णय लेना है, तब बाद में हम इसे दूसरों की ओर दे देते हैं। परमेश्वर का प्रेम प्राप्त करना एक महत्वपूर्ण कदम है क्योंकि उसके बिना अन्य लोगों से प्रेम नहीं कर सकते हैं। जो हमारे पास नहीं है उसे दूसरों को नहीं दे सकते हैं।