वरन् प्रेम में सच्चाई से चलते हुए सब बातों में उसमें जो सिर है, (अर्थात्) मसीह (उस अभिषिक्त) में बढ़ते जाएँ। -इफिसियों 4:15
यदि आप अपने जीवन में पीछे मुड़के देखते हैं, तो आप देखेंगे कि आप कभी भी आसान समय में नहीं बढ़ते हैं, आप कठिन समय में बढ़ते हैं। आसान समयों के दौरान जो गाते हैं आप उन चीज़ों के आनंद उठाने के योग्य होते हैं जो आपने कठिन दौर में कमाया है। यह सचमुच में जीवन का सिद्धान्त है। यह उसी प्रकार है जैसा वह कार्य करता है। आप महीने भर कार्य करते हैं और महीने के अंत में आप तनख्वाह पाते हैं और माह के अंत में आनंद पाते हैं।
आप व्यायाम करते हैं, अच्छा खाते हैं, स्वयं की देखरेख करते हैं, तब आप इस स्वस्थ शरीर का आनंद उठाते हैं। आप अपने घर को साफ़ करते, आप अपनी गाड़ी को साफ़ करते, और तब आप अपने साफ़ सुतरे ओड़ोस-पड़ोस का आनंद प्रत्येक बार उठाते हैं जब वहाँ चलते-फिरते हैं। मुझे इब्रानियों 12:11 स्मरण आता है, ‘‘वर्तमान में हर प्रकार की ताड़ना आनंद की नहीं, पर शोक ही की बात दिखाई पड़ती है; तौभी जो उसको सहते-सहते पक्के हो गए हैं, बाद में उन्हें चैन के साथ धर्म का प्रतिफल मिलता है।”
सचमुच में विजयी होने के लिए हमें उस स्थान तक बढ़ना चाहिए जहाँ हम कठिन दौर से भयभीत न हों; परन्तु वास्तव में उसकी चुनौती प्राप्त करें, चूँकि इसी कठिन दौर में ही हम बढ़ते हैं।