
परन्तु इसलिए कि तुम जान लो कि मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार है। तब उसने लकवे के रोगी से कहा, “उठ, अपनी खाट उठा, और अपने घर चला जा।” -मत्ती 9:6
पीड़ित लोगों के लिए यद्यपि यीशु तरस की भावना रखता था, परन्तु कभी भी वह उनके लिए खेद की भावना नहीं रखा। और जब कभी संभव था उसने लोगों की सहायता की कि वे स्वयं की सहायता कर सके। उसने उन्हें निर्देश दिया कि कुछ खास या कुछ विशेष कार्य करें और उसके निर्देश अक्सर आघात पहुँचाने वाले होते थे। उदाहरण के लिए, उसने एक लंगड़े व्यक्ति से उठने और अपने बिस्तर को उठाने और घर जाने के लिए कहा (मत्ती 9:6 देखिए)। उसने एक व्यक्ति से कहा जिसने अभी अभी अपनी पुत्री की मृत्यु का समाचार सुना था कि वह न डरे (मरकुस 5:35-36 देखिए)। जब यीशु ने एक अन्धे व्यक्ति को देखा, वह ज़मीन पर थूका और किचड़ बनाया और उसकी आँखों में लगा दिया और उसने उससे निर्देश दिया कि वह शिलो के कुण्ड में जाकर उसे धो ले। जब उस व्यक्ति ने ऐसा किया, वह देखने लगा। (यूहन्ना 9:1-7 देखिए)
हम देखते हैं कि यीशु ने अक्सर लोगों से कार्य करने के लिए कहा, न केवल आश्चर्यजनक था परन्तु असंभव दिखते थे। कैसे एक लंगड़ा व्यक्ति उठ सकता है और अपने बिस्तर को उठाकर चल सकता है? अन्ततः वह एक लंगड़ा व्यक्ति था। एक व्यक्ति जिसने अपनी बेटी की मृत्यु का समाचार सुना था, वह उससे भय की अपेक्षा कैसे नहीं की जा सकती थी? एक अन्धा व्यक्ति कैसे देखकर कुण्ड में जा सकता था, जबकि वह अन्धा था? इन लोगों के लिए खेद प्रगट करने के बजाए यीशु उन्हें गति में ले आया। उसने उनकी सहायता की कि वे अपने ऊपर से अपना ध्यान हटा लें और अपनी समस्याओं से अपना ध्यान हटा लें और तब अपने विषय में कुछ करने के लिए प्रेरित किया। यीशु दया से भर गया (मत्ती 9:36 देखिए)। वह अपनी स्थिति में रहने के बजाए लोगों को वही रहने दिया जहाँ वो रहना चाहते थे।
हर समय हम महसूस करते हैं कि हम तुच्छ हैं यदि हम ऐसे लोगों से सामना करते हैं। जब वास्तव में “कठोर प्रेम” यह है जो यीशु अक्सर लोगों को सफ़लता दिलाने के लिए इस्तेमाल करता है।