परन्तु जो संदेह करके खाता है वह दण्ड के योग्य ठहर चुका, क्योंकि वह विश्वास से नहीं खाता; और जो कुछ विश्वास से नहीं, वह पाप है (परमेश्वर की सहमति के बगैर जो कुछ भी किया जाए वह पाप है)। -रोमियों14:23
हमें नियन्त्रित करने या हमारा शोषण करने के लिए किसी को अनुमति देना क्या संभव है? ईमानदारीपूर्वक कहें तो हम ऐसा विश्वास करते हैं? बिल्कुल नहीं! हम जानते हैं कि इस प्रकार का व्यवहार का मूल भय है विश्वास का नहीं होना। विश्वास परमेश्वर की आज्ञा का पालन करता है, परन्तु भय से आसानी से ग्रस्त हुआ जा सकता है और अनाज्ञाकारिता बहुत सारे बहाने बनाता है।
एक व्यक्ति जो सिद्धता की चाह रखता है जो काम में मशहूर रहता है या यौन बातों में संलग्न रहता है वह उसी व्यक्ति के समान आश्रित है जो तंबाकू, शराब, और अन्य नशे के समान रसायनों के आदी हैं। यदि हम अपने स्वयं की ज़रूरतों की किमत पर पूरा करने का प्रयास करते हैं हम उस व्यक्ति पर तब आश्रित हो जाते हैं।
लोगों की सहायता करना अच्छा है जो पीड़ा में हैं, परन्तु जब उनकी भावनात्मक ज़रूरतें हमें नियन्त्रित करना प्रारंभ करती हैं तो हम उनके द्वारा और उनकी समस्याओं के द्वारा नेतृत्व किए जाने के खतरे में पड़ जाते हैं। उसके बजाए कि हम पवित्र आत्मा के नेतृत्व के द्वारा चलाए चले। विश्वास हमें बाहर निकलने और वह कहने या करने का कारण बनता है जो परमेश्वर ने हमारे हृदय में रखा है परन्तु भय हमें नियन्त्रण में और अपनी अधीनता में रहने का कारण बनाता है।
कितनी ही बार हमने शोषण करनेवाले लोगों को ऐसा कहते सुना है, ‘‘मैं बुढ़ा हो गया हूँ और तुम अब मेरी चिंता नहीं करते हो’’ या ‘‘मैंने तुम्हारा पालन पोषण किया है, मैंने तुम्हें घर और वस्त्र के लिए बलिदान दिया है और तुम्हें स्कूल भेजा और तुम मुझे यहाँ पर अकेला छोड़ देना चाहते हों’’?
ऐसी स्थिति में एक संतुलन लाने की ज़रूरत है। यह संतुलन हमारे भीतर की पवित्र आत्मा है जो हमें प्रत्येक परिस्थिती के सत्य की ओर अगुवाई देता है। वह हमें यह जानने की बुद्धि देगा कि कब हमें कुछ बातें ग्रहण करनी हैं या सामन्जस्य बिठाना है और कब हमें दृढ़ कदम उठाना है और स्थिर रहना है। हमेशा इस बात को मन में रखे कि विश्वास परमेश्वर की मानता है; भय आसानी से अनियन्त्रित भावनाओं द्वारा चलाए जाते हैं!