
हर बात में धन्यवाद करो: क्योंकि तुम्हारे लिये मसीह यीशु में परमेश्वर की यही इच्छा है।- 1 थिस्सलुनिकियों 5:18
किसी ने कभी मुझ से एक बार कहा, कि बाइबल में परमेश्वर की स्तुति करने के आह्वान अन्य किसी भी आह्वान से बहुत अधिक हैं। मैं नही जानती कि यह सच है, परन्तु यह होना चाहिये। जब हमारा मन धन्यवाद और स्तुति के साथ बहता है, तब हम शैतान के बिमार करनेवाले तरीकों के विरूद्ध प्रतिरोधात्मक क्षमता विकसित करते हैं।
यदि हम शिकायत करते या कुड़कुड़ाते हैं, तो इसके विपरित सच होता है, जितने अधिक हम शिकायत करते हैं, उतना ही बुरा जीवन प्राप्त करते है। शैतान जितना अधिक जयवन्त होता है, हम उतना ही अधिक पराजित महसूस करते हैं।
यदि हम विजय में जीवन जीने जा रहे हैं, तो स्तुति हमारे बड़े हथियारों में से एक होना चाहिये। एक बुद्धिमान पास्टर ने एक बार मुझ से कहा, स्तुति स्वर्ग और पृथ्वी को परमेश्वर की उपस्थिति से भर देती है, और अन्धकार को दूर भगाती है। अतः यदि आप पूर्णप्रकाश में जीना चाहते हैं, तो प्रभु की स्तुति करें।
जब हमारे साथ अच्छी घटनाएँ होती हैं, तो हम में से अधिकांश स्तुति करने लगते हैं। जब परमेश्वर हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर देता और हमें समस्याओं से छुड़ाता है; तब हमारे हाथों को ऊपर उठाना और आवाज को ऊपर उठाना आसान होता है। लेकिन जब कुछ गलत होता है तो यह हमेशा आसान नहीं होता है। जब हम बिमार होते, या हमारी नौकरी छुट जाती, या लोग हमारे विरोध में बोलते हैं, तब हम क्या करते हैं? ऐसी परिस्थिति में हम अपने मन को आनन्दपूर्ण धन्यवादियों से कैसे भरते हैं?
यदि हम उपरोक्त पदों को पढ़ते हैं और उसमें फिलिप्पियों 4:4 जोड़ते हैं, ‘‘प्रभु में सदा आनन्दित रहो (उस में स्वयं को प्रसन्न और आनन्दित रखें), मैं फिर से कहता हूँ, आनन्दित रहो।’’ हमारे पास विकल्प है।
नकारात्मक विकल्प अय्यूब की पत्नी का स्वभाव लेना है। जिसे बच्चों की हानी और संपत्ति की हानी ने इतना झनजोर दिया था कि वह चिल्ला उठी, ‘‘क्या तू अब भी अपनी खराई पर बना है? परमेश्वर की निन्दा कर, और चाहे मर जाए तो मर जा।’’ (अय्यूब 2:9)।
महान बुद्धि के साथ अय्यूब ने उत्तर दिया, ‘‘उस ने उस से कहा, तू एक अधर्मी मूर्ख स्त्री जैसे बातें करती है, क्या हम जो परमेश्वर के हाथ से सुख लेते हैं, दुःख न लें? इन सब बातों में भी अय्यूब ने अपने मुँह से कोई पाप नहीं किया।’’ (अय्यूब 2:10)। अय्यूब समझता था कि एक धर्मी जीवन का अर्थ यह नहीं है कि हमेशा सब कुछ बड़े आराम से चलता रहे और आशीष पे आशीष बरसती रहे।
हमारे सामने दो सकारात्मक विकल्प खुले हुए हैं और हम में से अधिकांश पहले का अभ्यास कर सकते हैं। परन्तु सब लोग दूसरे को स्वीकार नहीं कर सकते हैं। पहला परमेश्वर की स्तुति करना है बजाय की हमारे जीवन में कुछ भी चल रहा है। या दूसरे शब्दों में कहूँ, कि यह हमारे कठिनाइयों और परेशानियों के बीच में है। हम उन बातों पर आनन्दित हो सकते हैं जो हमारे जीवन में गलत नहीं है। इस में प्रयास लग सकता है, परन्तु हम यदि क्षणिक समस्याओं से अपनी आँखों को फेर लेते हैं, तो हम देख सकते हैं सब कुछ बुरा नहीं है। हम इसलिये भी आनन्दित हो सकते हैं, क्योंकि परमेश्वर ने विश्वासयोग्यता के साथ पीछले दिनों में हमें कठिनाईयों में से लेके चला है। और हम आनन्दित हो सकते हैं और हम जानते हैं कि वह पुनः यह कार्य करेगा।
दूसरा विकल्प यह पूछना है, ‘‘परमेश्वर मैं इस से क्या सीख सकता हूँ? इस के द्वारा तू मुझे क्या सिखाना चाहता है, ताकि मैं तेरे निकट आऊं और आपकी भलाई में और पूर्ण रीति से आनन्दित हो सकूँ? यह एक आसान प्रश्न नहीं है और अक्सर और भी कठिन होता है।
कभी कभी अपने जीवन से केवल महत्वपूर्ण सबक ग्रहण करते हैं, जब हम मुँह के बल गिर जाते हैं। यह मानो ऐसा है कि हम बहुत तेज दौड़ रहे हों, जितना हम दौड़ सकते हैं, और परमेश्वर हमें पकड़ने का प्रयास करता है। भजनकार कहता है, ‘‘यहोवा मेरा भाग है; मैंने तेरे वचनों के अनुसार चलने का निश्चय किया है।’’ (भजनसंहिता 119:57)। ऐसा नहीं है कि परमेश्वर हमें चोट पहुँचाना चाहता है। परन्तु परमेश्वर हमें इतना प्रेम करता है कि हमें रोकना चाहता है और हमें अपने मार्ग को बदलने का अवसर देना चाहता है, ताकि हम उस के पीछे चलें।
सेवकाई में मेरे बहुत वर्षों के दौरान मैंने लोगों से, ऐसी कहानियाँ सुनी है, जिन के पास बहुत अच्छी सेवकाई, या नौकरी या बहुत सारी धन का लेन देन होता था और तब सब कुछ बिखर गया। एक मनुष्य जो कभी करोड़पति था वह जेल में तीन साल काटने के बाद हमारी सभाओं में आया। उसके मुँह से जो पहला शब्द निकला वह था, ‘‘मैं खुश हूँ कि मुझे दोषी ठहराया गया, और मुझे जेल भेजा गया। मैं बहुत समय तक परमेश्वर से दौड़ रहा था। अन्ततः परमेश्वर ने मेरे ध्यान को खींचा, जब किसी ने मुझ जॉयस मेयर की ‘हिलिंग ऑफ ब्रोकेन हॉर्ट’ की प्रति दी।’’
हर कोई अपने दुःख के लिये आनन्दित और धन्यवाद नहीं दे सकता है, परन्तु हम तब उनके मध्य में भी धन्यवाद दे सकते हैं।
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परमेश्वर मैं आपके प्रेम के धन्यवादित हूँ। जब बातें गलत होतीं है तो मेरे कुड़कुड़ाने के लिये मुझे क्षमा करें। और मुझे स्मरण दिलाएँ कि मेरे जीवन में कितनी ही अच्छी बातें होंती हैं। तुझ में सदा आनन्दित होने के लिये मेरी सहायता कर। आमीन।।